आज पूरे देश और दुनिया भर में मुसलमान समुदाय ईद-ए मिलाद उन नबी का पर्व पूरे श्रद्धा, प्रेम और एकता के साथ मना रहा है। यह पर्व इस्लाम धर्म के सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक माना जाता है और इसे पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्म और उनके जीवन की महान शिक्षाओं को याद करते हुए मनाया जाता है।
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इस्लामी कैलेंडर के अनुसार, यह दिन हर साल रबी-उल-अव्वल महीने की 12वीं तारीख को मनाया जाता है। इसी वजह से इसे बारह वफ़ात भी कहा जाता है। इस साल यह दिन 5 सितंबर को पड़ रहा है, जो इस्लामिक कैलेंडर की 12 रबी-उल-अव्वल तिथि से मेल खा रहा है।
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मिलाद का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व
“मिलाद” शब्द का अर्थ होता है ‘जन्म’। यह अरबी शब्द “मौलिद” से लिया गया है, जिसका अर्थ है पैगंबर का जन्म दिवस। यह दिन न केवल उनके जन्म की खुशी में मनाया जाता है, बल्कि इसी दिन उनके इंतकाल (मृत्यु) की याद भी की जाती है। यही कारण है कि इसे खुशी और ग़म दोनों का दिन कहा जाता है।मान्यता है कि पैगंबर मुहम्मद साहब का जन्म मक्का में इसी दिन हुआ था और उनका इंतकाल भी इसी तारीख को हुआ था। सुन्नी मुस्लिम इसे 12 रबी-उल-अव्वल को मनाते हैं, जबकि शिया मुस्लिम इसे 17 रबी-उल-अव्वल को मनाते हैं।
श्रद्धा और भक्ति से मनाया गया पर्व
इस अवसर पर मस्जिदों में विशेष नमाज अदा की गई, कुरान की तिलावत और दुरूद शरीफ पढ़ा गया। कई जगहों पर विशाल जुलूस भी निकाले गए, जिनमें पैगंबर के जीवन और उनकी शिक्षाओं को जन-जन तक पहुंचाने का संदेश दिया गया।इस्लामी विद्वानों और इमामों ने इस दिन पैगंबर मोहम्मद साहब की शिक्षा, मानवता, भाईचारा, प्रेम और एकता के संदेश को दोहराया और मुसलमानों से उनके बताए रास्ते पर चलने की अपील की।
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कई शहरों और कस्बों में रंग-बिरंगी सजावट, रोशनी और नात-शरीफ (पैगंबर की प्रशंसा में गीत) की महफिलों का आयोजन हुआ। इस्लामी संगठनों ने गरीबों और ज़रूरतमंदों के लिए खाने और कपड़ों का भी इंतज़ाम किया, जिससे यह दिन मानव सेवा के प्रतीक के रूप में भी यादगार बन गया। ईद-ए मिलाद उन नबी केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह दिन मानवता, करुणा और सच्चाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। पैगंबर मोहम्मद साहब की शिक्षाएं आज भी दुनियाभर में प्रासंगिक हैं और इस दिन उन्हें याद करना, उनके बताए रास्ते पर चलने का संकल्प लेना हर मुसलमान के लिए गर्व और जिम्मेदारी की बात है।
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