च्यवनप्राश के बाजार में छिड़ी ‘स्वाद बनाम सच’ की जंग अब अदालत की चौखट तक पहुंच गई है। पतंजलि आयुर्वेद और डाबर इंडिया के बीच विज्ञापन विवाद पर दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया। डाबर ने आरोप लगाया है कि पतंजलि के विज्ञापन में बाकी सभी ब्रांड्स को “धोखा” बताया गया, जिससे उसकी साख को नुकसान पहुंचा है।
“बाकी सब धोखेबाज कैसे?” — अदालत का सवाल पतंजलि से
सुनवाई के दौरान जस्टिस तेजस करिया ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि पतंजलि यह दावा तो कर सकती है कि उसका च्यवनप्राश सर्वश्रेष्ठ है, लेकिन यह नहीं कह सकती कि अन्य कंपनियां “धोखेबाज” हैं। अदालत ने पूछा — “क्या शब्दकोश में ‘धोखा’ के अलावा कोई और शब्द नहीं है? आप कह सकते हैं कि बाकी उत्पाद कमतर हैं, पर सबको धोखेबाज कहना गलत है।”
डाबर का आरोप: प्रतिष्ठा को ठेस और उपभोक्ताओं में भ्रम
डाबर की ओर से कहा गया कि विज्ञापन में बाबा रामदेव उपभोक्ताओं को यह कहते नजर आते हैं कि “च्यवनप्राश के नाम पर लोगों को ठगा जा रहा है।” इससे उपभोक्ताओं को यह संदेश जाता है कि बाकी सभी कंपनियां नकली या धोखेबाज हैं। डाबर का कहना है कि यह विज्ञापन उनके 1949 से चले आ रहे डाबर च्यवनप्राश की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाता है, जो 61% बाजार हिस्सेदारी रखता है।
पतंजलि की सफाई: “हमने किसी का नाम नहीं लिया”
पतंजलि की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव नायर ने दलील दी कि विज्ञापन में किसी भी कंपनी का नाम नहीं लिया गया है। उन्होंने कहा — “हम सिर्फ यह कह रहे हैं कि हमारा उत्पाद बेहतर है। बाकी अप्रभावी हैं, लेकिन धोखेबाज नहीं।” उन्होंने जोड़ा कि “हर ब्रांड को यह अधिकार है कि वह अपने उत्पाद को श्रेष्ठ बताए।”
पतंजलि और डाबर के बीच यह विवाद सिर्फ एक विज्ञापन की लड़ाई नहीं, बल्कि उपभोक्ता विश्वास और ब्रांड प्रतिष्ठा की जंग बन चुका है। अब सबकी नजर दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले पर टिकी है। ताज़ा खबरों और अपडेट्स के लिए हमें Facebook और Instagram पर फॉलो करें।

