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रकुल प्रीत के सहज अभिनय से सजी जरूरी फिल्म, यौन शिक्षा पर बनी एक बेहतरीन फिल्म

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admin

Updated At: 20 Jan 2023 at 06:11 PM

महिला प्रधान विषयों पर हमारा समाज खुलकर बात नहीं करता है। शहर कोई भी हो, मानसिकता अब भी वही गांव वाली है कि महिलाओं की सेहत घर की प्राथमिकताओं में होती ही नहीं। और, ये शायद इसीलिए कि महिलाएं भी खुद को ऐसे मौकों पर कमजोर पाती हैं। महीने के उन चार दिनों में वह चौके चूल्हे से दूर क्यों बैठी हैं, अपने ही बच्चों को खुलकर बताती नहीं है। बच्चे जब किशोर हो रहे होते हैं, तो उनमें होने वाले शारीरिक बदलाव उनमें उत्सुकता जगाते हैं। वह जानना चाहते हैं कि आखिर वह जो महसूस कर रहे हैं, वह है क्या? जीव विज्ञान पढ़ाने वाले शिक्षक भी प्रजनन अंगों वाला पाठ सरसरती तौर पर पढ़ाकर निकल जाते हैं। फिल्म ‘छतरीवाली’ की खूबी यही है कि वह सिर्फ कंडोम के इस्तेमाल की जरूरत की ही बात नहीं करती बल्कि समस्या को सिरे से पकड़ती है और उस पर आखिर तक कायम रहती है।फिल्म ‘छतरीवाली’ एक तरह से देखा जाए तो देश में यौन शिक्षा की कमी से जूझते बच्चों के लिए एक ऐसा पाठ है जिसे हर स्कूल में पढ़ाया जाना अनिवार्य तो है लेकिन उसे पढ़ाना कम लोग ही चाहते हैं। फिल्म बहुत कुछ हाल ही में आई फिल्म ‘जनहित में जारी’ की लीक पर ही शुरू होती है। शुरू शुरू में लगता भी है कि ये उसी कहानी पर बनी बस एक और फिल्म है लेकिन फिल्म की लेखक जोड़ी संचित गुप्ता और प्रियदर्शी श्रीवास्तव जल्द ही गाड़ी सेकंड गेयर में ले आते हैं। उत्तर भारत में प्रचलित मुहावरों को अपने संवादों में शामिल करते चलती ये लेखक जोड़ी जल्दी ही कहानी की नायिका सान्या के सफर की दिशा तय कर देती है।यौन शिक्षा से जुड़ी फिल्मों के साथ समस्या ये भी रहती है कि वर्जित विषयों की तरह ये फिल्में भी समाज में वर्जित फिल्मों की श्रेणी में पहुंचा दी जाती हैं। लेकिन, इसके लिए जिम्मेदार एक तरह से देखा जाए तो सिनेमा बनाने वाले भी हैं। पिछले साल जून में सेंसर सर्टिफिकेट पाने वाली फिल्म ‘छतरीवाली’ अब जाकर रिलीज हो पा रही है और वह भी ओटीटी पर। सरकार इसमें पहल ये कर सकती है कि इस तरह की फिल्मों को पहले दिन से टैक्स फ्री करने के साथ साथ इनके प्रदर्शन को सिनेमाघरों में अनिवार्य कर सकती है। स्कूल जाने वाले बच्चों को अगर सौ पचास रुपये में ऐसी फिल्म देखने को मिले तो वह क्यों नहीं देखेंगे, कोई राह दिखाने वाला तो हो। फिल्म ‘छतरीवाली’ की नायिका यही राह बनाती चलती है।कहानी करनाल की है। उस हरियाणा की जहां महिला औऱ पुरुष का औसत देश में सबसे कम रहा है। मर्द संभोग के समय कंडोम इस्तेमाल करने को अपनी तौहीन समझते हैं और महिलाएं गर्भपात या अनचाहे गर्भ की परेशानियां चुपचाप झेलती रहती हैं। सान्या को भी शुरू में कंडोम की बात करना भाता नहीं है। वह केमिस्ट्री के ट्यूशन पढ़ाती है। नौकरी उसको मिलती है कंडोम टेस्टर की। घर का खर्चा उसी के वेतन से चलता है लेकिन घरवालों को वह अपनी नौकरी के बारे में बता नहीं पाती। शादी के बाद वह अपने पति को कंडोम का इस्तेमाल करने के लिए राजी करती है। आस पड़ोस की महिलाओं को भी इसके लिए समझाती है। और, मेडिकल स्टोर पर कंडोम खरीदने वालों की संख्या बढ़ने लगती है। यहीं पर कहानी का असली मोड़ आता है।फिल्म ‘छतरीवाली’ की तारीफ इसलिए भी करनी चाहिए कि ये बिना उपदेशात्मक फिल्म बने अपनी बात को हास्य विनोद के साथ बहुत ही सरल तरीके से समझाती चलती है। किरदारों के आपसी रिश्ते बनते बिगड़ते रहते हैं और परिस्थितिजन्य हास्य के सहारे फिल्म अपनी पकड़ बनाए रखती है। निर्देशक तेजस प्रभा विजय देओस्कर ने इस लिहाज से अपनी टीम अच्छी बनाई है। कहानी को वह अपने लेखकों की मदद से विकसित भी बहुत करीने से करेत हैं। गूढ़ विषय का हर पन्ना वह बहुत आराम से खोलते हैं और एक बार दर्शक को कहानी का रस आने लगता है तो वह इसे वहां ले जाते हैं जहां पर हर बात अपने आसपास की बात लगने लगती है। ऐसी फिल्मों में गीत संगीत की खास अहमियत बन नहीं पाती है और यहां भी मामला बस इसी विभाग में आकर खटकता है।अभिनय के लिहाज से देखा जाए तो ये फिल्म रकुल प्रीत सिंह की फिल्म है। बड़ी बड़ी हिंदी फिल्मों में छोटे छोटे रोल करती रहीं रकुल प्रीत को अपने करियर में पहली बार एक ऐसा किरदार मिला है, जिस पर कहानी का पूरा दारोमदार है। पूरी फिल्म रकुल ने अपनी दमक से चमकाई है। कंडोम टेस्टर बनने से पहले की सान्या से लेकर घर से बाहर होने की नौबत आने तक वह एक मजबूत महिला का अपना किरदार बिना उत्तेजित हुए बहुत दृढ़ता के साथ निभाने में कामयाब रहती हैं। उनके अभिनय में एक अलग तरह की सहजता है। वह जबर्दस्ती के भावों से दूर रहती हैं और अपने किरदार के साथ खुद को बहने देती हैं। उनका यही गुण उनके आकर्षण को खास बना देता है।फिल्म ‘छतरीवाली’ के बाकी कलाकारों ने भी अच्छा काम किया है। राकेश बेदी और राजेश तेलंग दोनों को अरसे बाद मौका मिला है अपनी अभिनय क्षमता का असली दम दिखाने का। जेठ के किरदार में राजेश तेलंग अपने अब तक के किरदारों से अलग नजर आते हैं। एक किशोर बेटी का पिता अपनी ही पत्नी की समस्याओं को नहीं समझ पाता है। और, जब घर की नई बहू उसे इसका भान कराती है तो उसे असल दिक्कत समझ आती है। डॉली अहलूवालिया, सतीश कौशिक, प्राची शाह और रिवा अरोड़ा भी अपने अपने किरदार में प्रभावी हैं। फिल्म ‘छतरीवाली’ एक ऐसी फिल्म है जिसे किशोर बच्चों को जरूर देखने के लिए कहना चाहिए और हो सके तो राज्य सरकारों को ये फिल्म सारे जूनियर हाई स्कूलों में मुफ्त में दिखाने की पहल करनी चाहिए।

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