राजस्थान में चल रही स्लीपर बसों का फर्जीवाड़ा सामने आया है, जिसने परिवहन व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। RTO (प्रादेशिक परिवहन कार्यालय) की जांच में पता चला है कि अधिकांश स्लीपर बसें असम और अन्य राज्यों में फर्जी तरीके से रजिस्टर्ड हैं, जबकि वे कभी उन राज्यों में गईं ही नहीं! जैसलमेर हादसे के बाद शुरू की गई इस कार्रवाई में, एक ऐसी बस पकड़ी गई जिसकी बॉडी जयपुर में बन रही थी, लेकिन वह असम के कामरूप जिले में रजिस्टर्ड दिखा रही थी। इस पूरे खेल के पीछे टैक्स चोरी और दलालों का बड़ा नेटवर्क सामने आया है। अतिरिक्त प्रादेशिक परिवहन अधिकारी की शिकायत पर गलता गेट पुलिस थाने में मुकदमा दर्ज कराया गया है।
बिना बॉडी ही असम में हो गया रजिस्ट्रेशन! RTO की कार्रवाई में पकड़ा गया ‘खेल’
परिवहन विभाग का यह खुलासा स्लीपर बस ऑपरेटरों की कारस्तानी को उजागर करता है। अतिरिक्त प्रादेशिक परिवहन अधिकारी की ओर से गलता गेट पुलिस थाने में दर्ज कराए गए मुकदमे के अनुसार, 18 अक्टूबर को दिल्ली रोड पर विजय लक्ष्मी बॉडी बिल्डिंग पर हुई जांच में यह फर्जीवाड़ा सामने आया। जांच के दौरान, एक बस का चेसिस नंबर और इंजन नंबर (MC2R5TOTD132060, E426CDTD521953) पंजीयन वाहन सॉफ्टवेयर 4.0 में डाला गया। सॉफ्टवेयर ने तुरंत पकड़ लिया कि जिस बस की बॉडी अभी जयपुर में बन ही रही है, वह 8 अक्टूबर 2025 को असम के कामरूप जिले में पंजीकृत (रजिस्टर्ड) दर्शा रही थी। यह साफ संकेत है कि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बस का पंजीयन कराया गया है। पुलिस ने बस संख्या AS 01 TC 9149 के मालिक मनीष के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया है और स्लीपर बस फर्जीवाड़ा की गहन जांच कर रही है।
दलालों का खेल और लाखों के टैक्स की चोरी: ऐसे बच रहा ‘होम टैक्स’
परिवहन विभाग का मानना है कि अधिकांश स्लीपर बसों में इसी तरह का फर्जीवाड़ा किया गया है। इस पूरे गोरखधंधे की मुख्य वजह टैक्स की चोरी है। बस संचालक टैक्स बचाने के चक्कर में दूसरे राज्यों में बैठे दलालों के माध्यम से रजिस्ट्रेशन करा रहे हैं। उदाहरण के लिए, राजस्थान में होम टैक्स (Home Tax) करीब 40 हजार रुपए महीना है, जबकि कई दूसरे राज्यों में यह टैक्स मात्र 4 हजार से 15 हजार रुपए तक है। लाखों का टैक्स बचाने के लिए ही निजी बसें दूसरे राज्यों में रजिस्टर्ड हो रही हैं, भले ही वे कभी उन राज्यों में गई न हों। यह खेल न केवल सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि बिना भौतिक सत्यापन के रजिस्ट्रेशन होने से इन बसों में सुरक्षा के मानक (Safety Standards) पूरे नहीं होते, जैसे एग्जिट गेट (Exit Gate) न होना, जो यात्रियों की जान जोखिम में डालता है।
सुरक्षा पर सवाल: बिना भौतिक सत्यापन के पंजीयन का खतरा
परिवहन विभाग की जांच में एक गंभीर बात सामने आई है कि दूसरे राज्यों के परिवहन विभाग ने इन बसों का रजिस्ट्रेशन बगैर भौतिक सत्यापन के (Without Physical Verification) कर दिया। किसी वाहन का भौतिक रूप से मौजूद न होना और फिर भी उसका रजिस्ट्रेशन हो जाना, सीधे तौर पर परिवहन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है। बगैर जांच के पंजीयन होने के कारण इन स्लीपर बसों में कई गंभीर खामियां (Defects) रह जाती हैं जो यात्री सुरक्षा के लिए खतरनाक हैं। परिवहन विभाग ने साफ कर दिया है कि जैसलमेर बस हादसा जैसी घटनाओं के बाद यह जांच और भी जरूरी हो गई है, ताकि फर्जी रजिस्ट्रेशन पर रोक लग सके और यात्रियों को सुरक्षित सफर मिल सके। ताज़ा खबरों और अपडेट्स के लिए हमें Facebook और Instagram पर फॉलो करें।

