जांजगीर-चांपा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1 सितंबर 2025 को TET अनिवार्यता पर जारी आदेश के बाद पूरे प्रदेश के पूर्व नियुक्त शिक्षकों में चिंताओं की लहर दौड़ गई है। इन्हीं आशंकाओं को सामने रखते हुए सर्व शिक्षक संघ के प्रतिनिधिमंडल ने सांसद कमलेश जांगड़े को विस्तृत ज्ञापन सौंपा। संघ का कहना है कि 2013 के पहले नियुक्त शिक्षक उस समय की शैक्षणिक अर्हताओं के हिसाब से चयनित हुए थे, इसलिए अब TET को अनिवार्य बनाना न तो न्यायसंगत है और न ही व्यावहारिक। प्रतिनिधियों ने चेताया कि इससे हजारों शिक्षकों के भविष्य पर संकट मंडरा रहा है।
पुराने शिक्षकों की मांग, ‘हमारी सेवा अनुभव को मान्यता मिले’
सर्व शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप पांडेय के नेतृत्व में हुए इस कार्यक्रम में प्रतिनिधियों ने स्पष्ट कहा कि 2013 से पहले नियुक्त शिक्षक बिना TET के ही नियमों के अनुसार चयनित हुए थे, इसलिए अब नई अर्हता लागू करना करोड़ों बच्चों की पढ़ाई और हजारों शिक्षकों की नौकरी दोनों को खतरे में डाल सकता है।
TET आधारित पात्रता पर सवाल
शिक्षक प्रतिनिधियों ने कहा कि वर्षों का अनुभव, शिक्षण कौशल और प्रशिक्षण को दरकिनार कर केवल TET को पात्रता का आधार बनाना गलत है। आदेश के बाद शिक्षकों में नौकरी खोने और परिवार पर संकट आने की आशंका बढ़ गई है। संघ का कहना है कि इससे शिक्षा व्यवस्था की गुणवत्ता भी प्रभावित हो सकती है।
सांसद से की मुख्य मांग, RTE Act में संशोधन
प्रतिनिधिमंडल ने सांसद जांगड़े से आग्रह किया कि शीतकालीन सत्र में RTE Act 2009 की धारा 23(1) में संशोधन कराकर पूर्व नियुक्त शिक्षकों के लिए TET अनिवार्यता को समाप्त किया जाए। उन्होंने कहा कि यह कदम हजारों शिक्षकों को राहत देगा और वर्षों से चल रही समस्या का स्थायी समाधान बनेगा।
कौन-कौन रहे मौजूद
कार्यक्रम में चिंतामणि घृतलहरे, प्रकाश स्वर्णकार, अरुण सोनवानी, कमलेश घृतलहरे, राधेश्याम भारद्वाज, लक्ष्मी लहरे सहित कई सदस्य- सोहनलाल रात्रे, संजीव कुमार भारद्वाज, लंबोदर प्रसाद भारद्वाज, भुनेश्वर रत्नाकर एवं शिवनंदन साय उपस्थित रहे।
TET अनिवार्यता पर उठा यह विरोध प्रदेश भर में नई बहस शुरू कर रहा है। शिक्षक संगठन उम्मीद कर रहे हैं कि सरकार और सांसद उनकी मांगों को गंभीरता से लेते हुए समाधान की दिशा में कदम उठाएँगे। ताज़ा खबरों और अपडेट्स के लिए हमें Facebook और Instagram पर फॉलो करें।


