हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। इस माह में आने वाली देवशयनी एकादशी के साथ ही भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसके बाद पूरे चार महीने तक शुभ कार्यों पर विराम लग जाता है। यह अवधि चातुर्मास के नाम से जानी जाती है और इसमें संयम, नियम और साधना को सर्वोच्च माना गया है।
आइए जानते हैं कि आषाढ़ मास में कौन से कार्य करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है और किन कार्यों से परहेज करना चाहिए
आषाढ़ मास में क्या करें
आषाढ़ में शिव की उपासना का विशेष महत्व है। इस पावन महीने में शिवलिंग पर जल अर्पण और रुद्राभिषेक विशेष फलदायी माने जाते हैं
सूर्य देव को प्रतिदिन अर्घ्य देना अत्यंत शुभ होता है। तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें रोली अक्षत मिलाकर सूर्य को अर्पित करना चाहिए
धार्मिक यात्रा इस माह में अत्यंत फलदायी होती है। विशेषकर तीर्थ स्थलों की यात्रा जीवन में सुख शांति और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती है
इस माह में दान करने का अत्यधिक महत्व है। छाता, घड़ा, खरबूजा, तरबूज, जल, नमक और आंवला दान करना विशेष पुण्यदायी होता है
तुलसी में जल अर्पित करते समय उसमें थोड़ा दूध मिलाने से घर में लक्ष्मी का वास होता है और दरिद्रता दूर होती है
आषाढ़ मास में क्या न करें
देवशयनी एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ हो जाता है। इस कालखंड में विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन, यज्ञोपवीत जैसे शुभ कार्य नहीं किए जाते
मांस, मदिरा और तामसिक भोजन का सेवन पूरी तरह से वर्जित माना गया है। यह समय आत्मसंयम और तप का होता है
क्रोध, वाणी पर नियंत्रण और असत्य से दूर रहना चाहिए। चातुर्मास संयम और तपस्या का महीना है, जिसमें आचरण की शुद्धता सर्वोपरि मानी गई है