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दुर्ग। जब दुनिया प्लास्टिक के दुष्प्रभावों से जूझ रही है, ऐसे में छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के 45 गांवों ने मिलकर एक मिसाल पेश की है। इन गांवों की ग्राम सभाओं ने सामूहिक आयोजनों में डिस्पोजल थाली, कटोरी, गिलास और चम्मच पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। अब किसी भी सामाजिक या धार्मिक आयोजन में गांव के ‘बर्तन बैंक’ से बर्तन लेकर उपयोग किया जाएगा।
यह फैसला न सिर्फ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक साहसिक कदम है, बल्कि ग्राम स्वराज की भावना का पुनर्जागरण भी है।
पहले समझाइश, फिर जुर्माना
ग्राम सभाओं ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई नियम का उल्लंघन करता है तो पहले उसे समझाइश दी जाएगी, लेकिन बार-बार की गलती पर जुर्माना वसूला जाएगा। यह निर्णय न सिर्फ पर्यावरणीय जिम्मेदारी को दर्शाता है, बल्कि सामुदायिक अनुशासन की एक उत्कृष्ट मिसाल भी है।
बर्तन बैंक: गांव की नयी पहचान
अब तक जिले के 300 में से 45 गांवों में बर्तन बैंक की स्थापना हो चुकी है। इस पूरी मुहिम को जिला पंचायत सीईओ बजरंग दुबे के मार्गदर्शन और स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत चलाया जा रहा है।
इस पहल में महिला स्व-सहायता समूहों की भूमिका बेहद सराहनीय है। वे लगातार ग्रामीणों को प्लास्टिक के खतरे और बर्तन बैंक की उपयोगिता के बारे में जागरूक कर रही हैं।
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बेलौदी बना रोल मॉडल
पाटन ब्लॉक का ग्राम बेलौदी इस अभियान का प्रेरणास्त्रोत बन चुका है। यहां के सरपंच हुकुमचंद निषाद ने अपने निजी खर्च से 100 थालियां और 100 गिलास खरीदकर ‘नव दुर्गा स्व-सहायता समूह’ के माध्यम से बर्तन बैंक की शुरुआत की।
गांव के 350 घरों में डस्टबिन बांटे गए, 35,000 रुपए के बर्तन खरीदे गए, और अब ग्रामीणों को सूखा-गीला कचरा अलग करने की आदत भी डाली जा रही है।
नया गाँव, नई सोच: जुर्माना नहीं जागरूकता
अभी फिलहाल पंचायत जागरूकता अभियान चला रही है, लेकिन अगले छह महीनों में यदि कोई नियमों की अनदेखी करता है, तो ग्रामसभा में जुर्माने का प्रस्ताव लाया जाएगा। यानी दंड नहीं, पहले ज्ञान और सहमति।
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कलेक्टर और प्रशासन की प्रतिबद्धता
दुर्ग के कलेक्टर अभिजीत सिंह और सीईओ बजरंग दुबे इस पहल को मॉडल गांवों की श्रृंखला में शामिल कर रहे हैं। प्रशासन का मानना है कि यदि हर गांव बेलौदी जैसा बन जाए, तो प्लास्टिक मुक्त भारत महज़ सपना नहीं, सच्चाई बन सकता है।
छोटे-छोटे गांवों की यह छोटी-सी पहल एक बड़े परिवर्तन की भूमिका लिख रही है। जहां शासन, प्रशासन और जनता एकजुट होकर कह रही है —
“प्लास्टिक को ना, प्रकृति को हां”।
इन गांवों की सोच, प्रतिबद्धता और नवाचार यह साबित करते हैं कि परिवर्तन केवल बड़े शहरों से नहीं, बल्कि छोटे गांवों की चौपालों से भी शुरू हो सकता है।यह केवल बर्तन बदलने की नहीं, सोच बदलने की शुरुआत है।