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पुण्यतिथि पर विशेष : : आदिवासी समाज की बुलंद आवाज़ बस्तर के जननायक बलिराम कश्यप की अमर विरासत

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"जो बस्तर की माटी से जन्मा, वही माटी का मसीहा था,हर दिल में जो बसता था, वो बलिराम कश्यप था।आदिवासियों की ताक़त था, संघर्षों की पहचान था,सत्ता के खेल से दूर, बस जनता का भगवान था।"Cg now टीम छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक ऐसा नाम, जिसने आदिवासी समाज की आवाज़ को बुलंद किया और बस्तर की धरती पर विकास की नींव रखी—वह नाम है बलिराम कश्यप। भारतीय जनता पार्टी के इस कद्दावर नेता ने जनजातीय समाज के हक़ और हुक़ूक़ के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। वे सिर्फ़ एक राजनेता नहीं, बल्कि बस्तर की आत्मा से जुड़े हुए जननायक थे, जिनका प्रभाव आज भी देखा जा सकता है।संघर्ष से सशक्तिकरण तक का सफरबलिराम कश्यप का जन्म 1936 में हुआ था। वे 1972 से 1992 तक मध्य प्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे। इस दौरान उन्होंने आदिवासी समाज के उत्थान के लिए कई अहम कदम उठाए।1977-78: मध्य प्रदेश सरकार में राज्य मंत्री रहे।1978-80 और 1988-92: आदिवासी कल्याण मंत्री के रूप में कार्य किया।1998 में पहली बार लोकसभा सांसद बने, उसके बाद लगातार 1999, 2004 और 2009 में सांसद चुने गए।चार बार सांसद रहने के दौरान उन्होंने बस्तर क्षेत्र के लिए ऐतिहासिक कार्य किए।बस्तर में था जबरदस्त दबदबाबलिराम कश्यप को लेकर कहा जाता है कि बस्तर में उनका गहरा प्रभाव था। 2003 और 2008 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की बस्तर में शानदार जीत में उनकी अहम भूमिका मानी जाती है।2003 में भाजपा को 12 में से 9 सीटें मिलीं।2008 में भाजपा ने 12 में से 11 सीटों पर विजय हासिल की।बलिराम कश्यप के निधन के बाद भाजपा बस्तर में पहले जैसा करिश्मा नहीं कर पाई।PM मोदी ने बताया 'बस्तर का गुरु'बलिराम कश्यप का प्रभाव सिर्फ़ बस्तर तक सीमित नहीं था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद उन्हें 'बस्तर का गुरु' बताया।1998 में जब नरेंद्र मोदी छत्तीसगढ़ के भाजपा प्रभारी बने, तब वे बस्तर में बलिराम कश्यप के साथ संगठन का काम किया करते थे। पीएम मोदी ने कहा—"जब भी बस्तर की धरती पर आता हूं और बलिराम कश्यप जी की याद न आए, ऐसा हो ही नहीं सकता।"राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहा परिवारबलिराम कश्यप के पुत्र केदार कश्यप छत्तीसगढ़ सरकार में मंत्री रहे और उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।जनता के दिलों में अमर रहेंगे बलिराम कश्यप10 मार्च 2011 को इस महान नेता ने दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन उनकी विचारधारा, संघर्ष और सेवा का जज़्बा आज भी बस्तर की मिट्टी में ज़िंदा है।वे सच में बस्तर के जननायक थे, जिन्होंने राजनीति को सेवा का माध्यम बनाया और आदिवासी समाज को एक सशक्त पहचान दिलाई।"सियासत के बाज़ार में बिकते नहीं थे, अलग ही उनकी शान थी,जो जंगल की गूंज सुनते थे, वही उनकी पहचान थी।विकास की मशाल जलाई, हर गाँव में रौशनी आई,बस्तर की धड़कन थे वो, जो आज भी ज़िंदा दिखाई।"

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