होली 2025: : खुशियों के रंग और पर्यावरण की सुरक्षा का संकल्प

Faizan Ashraf
Updated At: 11 Mar 2025 at 07:48 AM
होली भारत का एक प्रमुख त्योहार है, जो प्रेम, भाईचारे और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह त्योहार हमें जाति, धर्म और वर्ग से ऊपर उठकर एकता के रंग में रंगने का संदेश देता है। परंपरागत रूप से, होली प्राकृतिक रंगों और सामाजिक समरसता के साथ मनाई जाती थी, लेकिन समय के साथ इसमें कई बदलाव आए हैं।
बदलते समय के साथ बदलती होली
आजकल होली में रासायनिक रंगों का अत्यधिक उपयोग, पानी की बर्बादी, प्लास्टिक कचरा और ध्वनि प्रदूषण जैसी समस्याएं देखने को मिलती हैं। इन सबका पर्यावरण और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐसे में आवश्यक है कि हम अपनी परंपराओं को संरक्षित रखते हुए होली को अधिक सुरक्षित और पर्यावरण-अनुकूल बनाएं।
पर्यावरण पर होली का प्रभाव
1. रासायनिक रंगों का खतरा
पहले होली प्राकृतिक रंगों से खेली जाती थी, जो फूलों, चंदन, हल्दी और अन्य हर्बल पदार्थों से बनाए जाते थे। लेकिन आज बाजार में मौजूद अधिकतर रंग सिंथेटिक होते हैं, जिनमें लेड, पारा, क्रोमियम और अन्य हानिकारक धातुएं होती हैं। ये न केवल त्वचा और आंखों के लिए हानिकारक हैं, बल्कि जल स्रोतों को भी प्रदूषित करते हैं।
2. पानी की बर्बादी
होली के दौरान रंगों और पानी के गुब्बारों का अत्यधिक उपयोग जल संकट को और गंभीर बना सकता है। भीगे हुए कपड़ों को धोने और पानी से रंगों को हटाने में हजारों लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। जल संकट झेल रहे क्षेत्रों में यह समस्या और भी विकराल हो जाती है।
3. होलिका दहन और वायु प्रदूषण
होलिका दहन एक पवित्र परंपरा है, लेकिन जब इसमें बड़ी मात्रा में लकड़ी जलाई जाती है, तो यह वनों की कटाई को बढ़ावा देता है। कई जगहों पर लोग प्लास्टिक, रबर और अन्य हानिकारक वस्तुएं जलाते हैं, जिससे जहरीली गैसें निकलती हैं और वायु प्रदूषण बढ़ता है।
4. ध्वनि प्रदूषण और सामाजिक असहजता
होली के दौरान तेज डीजे, पटाखों और लाउडस्पीकर का शोर वृद्धजनों, छोटे बच्चों और बीमार व्यक्तियों के लिए परेशानी का कारण बन सकता है। इसके अलावा, जबरन रंग लगाने और हुड़दंग जैसी घटनाएं इस त्योहार की गरिमा को ठेस पहुंचाती हैं।
कैसे मनाएं पर्यावरण-अनुकूल होली?
1. प्राकृतिक रंगों का करें उपयोग
रासायनिक रंगों के बजाय फूलों से बने रंग, हल्दी, चंदन, मेंहदी और अन्य जैविक रंगों का प्रयोग करें। आप घर पर भी आटा, बेसन या मैदा से सूखा गुलाल बना सकते हैं। इससे त्वचा सुरक्षित रहेगी और जल प्रदूषण भी कम होगा।
2. सूखी होली को दें प्राथमिकता
पानी की बचत के लिए सूखी होली खेलें। गुलाल और फूलों से खेलकर भी त्योहार का आनंद लिया जा सकता है। अगर पानी का उपयोग करना ही है, तो उसे सीमित मात्रा में करें और अनावश्यक बर्बादी से बचें।
3. होलिका दहन को बनाएं पर्यावरण-संवेदनशील
लकड़ी के बजाय गोबर के उपले और कृषि अपशिष्ट का उपयोग करें। इससे लकड़ी की खपत कम होगी और वायु प्रदूषण भी नियंत्रित रहेगा। सामूहिक होलिका दहन को बढ़ावा दें, जिससे संसाधनों की बर्बादी रुके।
4. स्वच्छता और समाज की सुरक्षा का ध्यान रखें
होली के बाद प्लास्टिक की पन्नियों, रंगों और अन्य कचरे को सही तरीके से निपटाएं। जबरन रंग लगाने और हुड़दंग से बचें, ताकि यह त्योहार सभी के लिए सुखद अनुभव बने।
रंगों का त्योहार – पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी के साथ
होली खुशियों का पर्व है, इसलिए इसे इस तरह मनाएं कि यह सभी के लिए आनंददायक हो। इस बार संकल्प लें कि हम प्राकृतिक रंगों का उपयोग करेंगे, पानी की बचत करेंगे, सफाई का ध्यान रखेंगे और दूसरों की भावनाओं का सम्मान करेंगे।
"रंग ऐसे खेलें जो दिलों को जोड़ें, न कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाएं!"
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