रायपुर। छत्तीसगढ़ के जंगलों से सटे सैकड़ों गांवों में लोग हर दिन हाथियों के हमले की दहशत के साए में जीते हैं। कभी फसलें रौंदी जाती हैं, कभी घर टूटते हैं, तो कई बार मासूमों की जान तक चली जाती है। वनों का सिकुड़ना और हाथियों के पारंपरिक प्रवास मार्गों का बाधित होना इस संघर्ष की सबसे बड़ी वजह बन चुकी है। अब इसी जटिल समस्या से निपटने के लिए एनआईटी रायपुर ने एक फुली ऑटोमेटेड चेतावनी प्रणाली और मोबाइल ऐप विकसित करने की पहल की है, जो जंगल और गांव के बीच खड़ी हो रही इस दीवार को तोड़ने में मील का पत्थर साबित हो सकती है।
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एनआईटी के कंप्यूटर साइंस विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. दिलीप सिंह सिसोदिया और डॉ. दीपक सिंह इस विशेष प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। यह परियोजना छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (CCOST) के सहयोग से संचालित की जा रही है और इसे “छत्तीसगढ़ में मानव–हाथी संघर्ष कम करने हेतु स्वचालित हाथी ट्रैकिंग एवं शीघ्र चेतावनी प्रणाली” नाम दिया गया है। परिषद ने इस परियोजना के लिए 5 लाख रुपये का फंड भी मंजूर किया है।
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एक जरूरी पहल, क्योंकि आंकड़े डराते हैं
वर्ष 2000 से 2023 तक छत्तीसगढ़ के 19 वनमंडलों में 737 लोगों की मौत और 91 घायल हुए हैं। अकेले पिछले 5 वर्षों में 303 लोगों और 90 हाथियों की जान जा चुकी है। चौंकाने वाली बात यह है कि देश के केवल 1% हाथी छत्तीसगढ़ में हैं, लेकिन यहां हाथियों से जुड़ी मौतें देश की कुल मौतों का 15% हिस्सा बन गई हैं।
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तीन स्तरीय तकनीकी रणनीति
इस प्रणाली को तीन चरणों में विकसित किया जा रहा है, ताकि हाथियों की गतिविधियों को रियल टाइम में पहचाना और ट्रैक किया जा सके:
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मोबाइल आधारित अलर्ट सिस्टम:
चयनित ग्रामीणों के मोबाइल पर हाथियों की उपस्थिति दर्ज करने का अधिकार होगा। जैसे ही हाथी दिखाई देगा, अलर्ट पूरे क्षेत्र में फैलेगा। -
सेंसर आधारित ट्रैकिंग:
खास सेंसर हाथियों की आवाज़ और पैरों की आहट पहचानेंगे। इससे उनकी दूरी, दिशा और गति का अनुमान लगाया जा सकेगा। -
एआई आधारित पूर्वानुमान प्रणाली:
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग कर हाथियों की आवाजाही का गहन विश्लेषण किया जाएगा। इससे भविष्य में हाथियों के संभावित मार्गों और व्यवहार की पूर्व जानकारी उपलब्ध होगी।
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कैसा होगा अलर्ट सिस्टम?
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स्मार्टफोन पर नक्शे के माध्यम से हाथियों की लाइव लोकेशन दिखाई जाएगी।
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फीचर फोन इस्तेमाल करने वालों को एसएमएस अलर्ट मिलेगा।
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अधिकृत व्यक्ति हाथियों की लोकेशन ट्रैक कर स्थानीय लोगों को त्वरित सूचना दे सकेंगे।
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परंपरागत तरीकों से आधुनिक तकनीक की ओर
वर्तमान में ग्रामीण ढोल बजाकर, पटाखे जलाकर या आग लगाकर हाथियों को भगाने की कोशिश करते हैं, जो कई बार और अधिक खतरे को जन्म देती है। एनआईटी द्वारा तैयार किया जा रहा यह स्वचालित तकनीकी सिस्टम, एक सटीक, तेज और सुरक्षित समाधान प्रदान करेगा।
स्थानीय भाषा और ऑफलाइन सुविधा के साथ
यह तकनीक केवल इंटरनेट आधारित नहीं होगी। स्थानीय भाषा में चेतावनी, ऑफलाइन कार्य करने की क्षमता और यूजर फ्रेंडली इंटरफेस इसे ग्रामीणों के लिए और अधिक उपयोगी बना देगा। इससे उन्हें समय पर तैयारी का मौका मिलेगा और इंसानों और हाथियों दोनों की जान बचाई जा सकेगी।
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“यह सिर्फ एक तकनीक नहीं, बल्कि जंगलों के आसपास रहने वाले लोगों को सुरक्षा का भरोसा देने की कोशिश है। हमारा लक्ष्य है कि ग्रामीण भय में न रहें, बल्कि तकनीक के साथ सजग और सुरक्षित महसूस करें।”
— डॉ. दिलीप सिंह सिसोदिया, एसोसिएट प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग, एनआईटी रायपुर
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इस साल के अंत तक लॉन्च का लक्ष्य
इस परियोजना का विचार 2019 में जन्मा, वर्ष 2021 में सीकॉस्ट के समक्ष प्रस्तुत किया गया और 2023 में इसे स्वीकृति मिली। वर्तमान में ऐप की टेस्टिंग चल रही है, और 2025 के अंत तक इसे ग्राउंड लेवल पर लागू करने का लक्ष्य है। यह पहल तकनीक और मानवीय संवेदना का अद्भुत संगम है, जो छत्तीसगढ़ के गांवों में भय नहीं, सुरक्षा और भरोसा पहुंचाने का कार्य करेगी। ताज़ा खबरों और अपडेट्स के लिए हमें Facebook और Instagram पर फॉलो करें।