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नई दिल्ली, 2 नवंबर 2025:
देशभर के स्कूलों में बच्चों की सेहत और सांसों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है।एनजीटी ने आदेश दिया है कि देश के सभी सरकारी और निजी स्कूलों की छतों से जहरीली एस्बेस्टस (Asbestos) शीट्स को हटाया जाए, क्योंकि ये बच्चों के फेफड़ों के लिए गंभीर खतरा हैं।

न्यायिक सदस्य अरुण कुमार त्यागी और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. अफरोज अहमद की पीठ ने यह आदेश पर्यावरण संरक्षण कानून 1986 और वायु प्रदूषण रोकथाम कानून 1981 के तहत दिया है।एनजीटी ने कहा— “बच्चों की सेहत सर्वोपरि है, इसलिए सावधानी का सिद्धांत अपनाते हुए सभी स्कूलों को एक साल के भीतर एस्बेस्टस शीट्स हटानी होंगी।”

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क्या है एस्बेस्टस और क्यों है खतरनाक?

एस्बेस्टस (Asbestos) एक महीन रेशेदार खनिज है, जो छतों और दीवारों में सस्ते निर्माण सामग्री के रूप में इस्तेमाल होता है।
लेकिन इसके रेशे हवा में घुलकर फेफड़ों में चले जाते हैं, जिससे

  • फेफड़ों का कैंसर,
  • अस्बेस्टोसिस,
  • स्वरयंत्र और अंडाशय के कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) पहले ही चेतावनी दे चुका है कि “एस्बेस्टस का कोई भी रूप सुरक्षित नहीं है।”

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NGT ने क्या कहा आदेश में

एनजीटी ने कहा है कि:

  • जिन स्कूलों की एस्बेस्टस छत अच्छी स्थिति में हैं, वहां पेंट या सुरक्षात्मक कोटिंग लगाई जा सकती है।
  • लेकिन जहां शीट्स टूटी-फूटी या खराब स्थिति में हैं, उन्हें गीला करके विशेषज्ञों की मदद से तुरंत हटाया जाए, ताकि हवा में जहरीले रेशे न फैलें।
  • स्कूल केवल प्रमाणित पेशेवरों से ही ऐसी सामग्री की मरम्मत या हटाने का काम कराएं।
  • स्कूल कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वे एस्बेस्टस से जुड़े जोखिम और सुरक्षा उपाय समझ सकें।

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कचरे के निपटान के लिए सख्त नियम

एनजीटी ने कहा कि एस्बेस्टस एक खतरनाक रासायनिक अपशिष्ट है और इसका निपटान बेहद सावधानी से किया जाना चाहिए।
आदेश के अनुसार:

  • एस्बेस्टस कचरे को सीलबंद कंटेनर या विशेष बैग में पैक किया जाए।
  • परिवहन के दौरान वाहन ढके हुए हों और उन पर साफ लिखा हो — “एस्बेस्टस वेस्ट”
  • कचरा केवल लाइसेंस प्राप्त खतरनाक अपशिष्ट निपटान स्थलों पर ही डंप किया जाए।

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राज्यों और मंत्रालयों को मिली जिम्मेदारी

एनजीटी ने केंद्र और राज्य सरकारों को स्पष्ट जिम्मेदारियाँ सौंपी हैं:

  • शिक्षा मंत्रालय को राज्यों को दिशा-निर्देश देने और फंड की व्यवस्था करने का आदेश।
  • पर्यावरण मंत्रालय को नए नियम और नीति तैयार करनी होगी।
  • सीपीसीबी (केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) को छह महीने में गाइडलाइंस और मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) जारी करनी होगी।
  • स्वास्थ्य मंत्रालय को एस्बेस्टस से जुड़ी बीमारियों की जांच और जनजागरूकता अभियान चलाने होंगे।
  • राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को नियमित निरीक्षण और रिपोर्टिंग की जिम्मेदारी दी गई है।

हर मंत्रालय को तीन महीने में प्रगति रिपोर्ट और छह महीने बाद अंतिम रिपोर्ट एनजीटी को सौंपनी होगी।

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स्कूल प्रबंधन के लिए चेतावनी

एनजीटी ने सख्त कहा कि स्कूल प्रबंधन खुद से कोई ऑडिट या निरीक्षण नहीं करेगा।
यदि ऐसा पाया गया तो

  • स्कूल पर जुर्माना लगाया जाएगा
  • और जरूरत पड़ी तो संस्थान बंद भी किया जा सकता है।

श्रमिकों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता

जहां भी एस्बेस्टस हटाने या मरम्मत का कार्य होगा, वहां श्रमिकों के लिए ये सुरक्षा कदम अनिवार्य होंगे:

  • हवा में एस्बेस्टस के स्तर की नियमित निगरानी
  • खतरे के संकेत और चेतावनी बोर्ड
  • सुरक्षात्मक कपड़े, मास्क (PPE) और दस्ताने
  • नियमित स्वास्थ्य जांच और प्रशिक्षण
  • कार्यस्थल पर धूम्रपान, खाना-पीना पूरी तरह प्रतिबंधित

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क्यों पहुंचा मामला एनजीटी तक

दिल्ली के स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर के एक अतिथि शिक्षक ने एनजीटी में याचिका दायर की थी।
याचिकाकर्ता ने कहा कि देशभर के स्कूलों में एस्बेस्टस छतें बच्चों की सेहत के लिए गंभीर खतरा हैं।
उन्होंने 2022 में प्रकाशित Nature Scientific Reports और WHO की चेतावनियों का हवाला देते हुए कहा कि
एस्बेस्टस छतों से निकलने वाले सूक्ष्म रेशे बच्चों में कैंसर और फेफड़ों की बीमारियों का कारण बन सकते हैं।

देश के लिए एक ऐतिहासिक कदम

एनजीटी का यह आदेश न केवल स्कूलों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए पर्यावरण सुरक्षा की दिशा में ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।
ट्रिब्यूनल ने स्पष्ट कहा —“बच्चों की सांसों को जहरीली छतों के नीचे नहीं कैद किया जा सकता।अब हर बच्चे को मिलेगी साफ हवा में सांस लेने की आजादी।”

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