रायपुर। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय 21 जून को जशपुर जिले के तपकरा में आयोजित भव्य कार्यक्रम में चरण पादुका वितरण योजना का प्रदेशव्यापी शुभारंभ करेंगे। इस योजना के तहत तेंदूपत्ता संग्राहक परिवारों की महिलाओं को निःशुल्क चरण पादुका वितरित की जाएगी। यह कार्यक्रम राज्य सरकार के संकल्प पत्र में किए गए उस वादे को साकार करेगा, जिसमें पिछली सरकार द्वारा बंद की गई योजना को पुनः शुरू करने का संकल्प लिया गया था।
मुख्यमंत्री कार्यक्रम स्थल पर स्वयं चरण पादुका प्रदान कर योजना का शुभारंभ करेंगे और इसे संग्राहक परिवारों की गरिमा और सुविधा से जोड़ा जाएगा। सरकार द्वारा योजना के क्रियान्वयन हेतु 40 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी गई है, जिससे प्रदेश के 12 लाख 40 हजार संग्राहक परिवारों की महिलाओं को प्रत्यक्ष लाभ मिलेगा।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा कि यह सिर्फ चरण पादुका नहीं, बल्कि संग्राहक परिवार के आत्मसम्मान और सुरक्षा का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि तेंदूपत्ता संग्राहकों का राज्य की अर्थव्यवस्था और वनोपज आधारित आजीविका में अमूल्य योगदान है। सरकार की यह योजना उनकी कठिन मेहनत को सम्मान देने का प्रयास है।
इस योजना का मुख्य उद्देश्य कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में कार्य करने वाली संग्राहक महिलाओं को सुविधा देना और उनके स्वास्थ्य एवं सुरक्षा की रक्षा करना है। यह निर्णय छत्तीसगढ़ सरकार की संवेदनशील और समर्पित सोच का प्रमाण है, जो समाज के अंतिम व्यक्ति तक न्याय और संसाधन पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है।
तेंदूपत्ता संग्राहकों को 745 करोड़ का पारिश्रमिक भुगतान
इस वर्ष अप्रैल के तीसरे सप्ताह से शुरू हुआ तेंदूपत्ता संग्रहण कार्य अब पूर्ण हो चुका है। 902 प्राथमिक लघु वनोपज सहकारी समितियों के माध्यम से 10 हजार 631 फड़ों में संग्रहण कराया गया। हालांकि असमय वर्षा, तूफान और ओलावृष्टि ने फसल को प्रभावित किया, फिर भी 11 लाख 40 हजार से अधिक संग्राहक परिवारों ने 13 लाख 54 हजार मानक बोरा तेंदूपत्ता का संग्रहण कर राज्य के लिए 745 करोड़ रुपये का वनोपज विक्रय सुनिश्चित किया।
इस राशि का भुगतान डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) के माध्यम से किया जा रहा है। अब तक 300 करोड़ रुपये से अधिक की राशि सीधे संग्राहकों के खातों में अंतरित की जा चुकी है, जबकि शेष राशि का भुगतान प्रक्रिया में है।
चरण पादुका योजना का शुभारंभ और 745 करोड़ का पारिश्रमिक भुगतान राज्य सरकार के वन आश्रित परिवारों के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह कदम सामाजिक न्याय, महिला सम्मान और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सशक्तिकरण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।