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रायपुर। छत्तीसगढ़ ने अब देश के पहले ‘डिजिटल ट्राइबल म्यूजियम’ का शुभारंभ कर अपनी जनजातीय विरासत और स्वतंत्रता संग्राम की गौरवशाली गाथा को नई डिजिटल तकनीकों के माध्यम से जीवंत कर दिया है। यह संग्रहालय शहीद वीर नारायण सिंह स्मारक एवं जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय के रूप में स्थापित किया गया है और आधुनिक एआई, होलोग्राम और 3डी प्रोजेक्शन तकनीक के जरिए आगंतुकों को इंटरएक्टिव अनुभव प्रदान करता है।
संग्रहालय में आगंतुकों को हल्बा विद्रोह, पारलकोट आंदोलन, भूमकाल क्रांति, रानी चो-रिस आंदोलन जैसी ऐतिहासिक घटनाओं की झलक देखने को मिलती है। 1857 के क्रांतिकारी शहीद वीर नारायण सिंह और अन्य अल्पज्ञात वीरों जैसे झाड़ा सिरहा की शौर्यगाथा भी प्रदर्शित की गई है।
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यह संग्रहालय लगभग 9.75 एकड़ क्षेत्र में फैला है और इसे 53.13 करोड़ रुपये की लागत से विकसित किया गया है। इसमें 650 से अधिक मूर्तियाँ, डिजिटल गैलरियाँ, एआई-आधारित इंटरएक्टिव प्रदर्शन और आधुनिक तकनीक से लैस 14 थीम आधारित गैलरियाँ मौजूद हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार ने इसे ‘आदि संस्कृति’ का जीवंत केंद्र बताया है, जो 43 अनुसूचित जनजातियों की पहचान को संरक्षित करने के साथ महिला सशक्तिकरण और रोजगार सृजन में भी योगदान देगा। संग्रहालय में महिलाओं के स्व-सहायता समूहों द्वारा कैंटीन और अन्य कार्य संचालित किए जा रहे हैं।
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संग्रहालय में एआई आधारित भाषा संरक्षण प्लेटफॉर्म – आदि वाणी के माध्यम से गोंडी, मुंडारी और भीली जैसी जनजातीय भाषाओं को डिजिटल रूप से संरक्षित किया जा रहा है।
यह पहल छत्तीसगढ़ की जनजातीय परंपरा, आधुनिक तकनीक और सामाजिक सशक्तिकरण का अनूठा संगम प्रस्तुत करती है और भारत की जनजातीय विरासत को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगी।
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