10 मई को अक्षय तृतीया, जानिए इसका महत्व और क्यों होती है यह तिथि इतनी खास

admin
Updated At: 08 May 2024 at 05:04 PM
हिंदू पंचांग के अनुसार अक्षय तृतीया वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व इस बार 10 मई, शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस तिथि की अधिष्ठात्री देवी माता पार्वती हैं। अक्षय का अर्थ है कभी क्षय न होना अर्थात इस तिथि के दिन पूजा-पाठ, दान, स्नान और शुभ कार्य करने से उनका फल अक्षय ही रहता है। मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही युधिष्ठिर को भगवान श्रीकृष्ण ने अक्षय पात्र दिया था, जिसमें कभी भी भोजन समाप्त नहीं होता था।
अक्षय तृतीया का महत्व Akshaya Tritiya Significance
वर्तमान 'कल्प' में मां पार्वती ने इस तिथि को बनाया और अपनी शक्ति प्रदान करके फलित कर दिया। धर्मराज को इस तिथि का महत्व समझाते हुए माता पार्वती कहती हैं कि कोई भी स्त्री, जो किसी भी तरह का सुख चाहती है उसे यह व्रत करते हुए नमक का पूरी तरह से त्याग करना चाहिए। स्वयं में भी यही व्रत करके मैं भगवान शिव के साथ आनंदित रहती हूं। विवाह योग्य कन्याओं को भी उत्तम वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत करना चाहिए। जिनको संतान नहीं हो रही हो वे स्त्रियां भी इस व्रत करके संतान सुख प्राप्त कर सकती हैं। अक्षय तृतीया का स्वयं सिद्ध मुहूर्त के रूप में भी बड़ा महत्व है। बिना पंचांग देखे भी इस दिन कोई भी शुभ मांगलिक कार्य जैसे विवाह,गृह प्रवेश, घर, भूखंड या वाहन आदि की खरीदारी से सम्बंधित कार्य किए जा सकते हैं।
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इसलिए है ये तिथि बहुत खास
इस पर्व से अनेकों पौराणिक बातें जुड़ी हुई हैं। महाभारत का युद्ध भी इसी दिन समाप्त हुआ था।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार त्रेता और सतयुग का आरंभ भी अक्षय तृतीया को हुआ था। इसलिए इस युगादि तिथि के नाम से भी जाना जाता है।
स्वर्ग के राजा इंद्र की पत्नी देवी इंद्राणी यही व्रत करके इसके पुण्य प्रताप से जयंत नामक पुत्र प्राप्त किया।
देवी अरुंधति भी यही व्रत करके अपने पति महर्षि वशिष्ठ के साथ आकाश में सबसे ऊपर का स्थान प्राप्त कर सकीं।
प्रजापति दक्ष की पुत्री रोहिणी इसी व्रत के कारण अपने पति चंद्र की सबसे प्रिय रानी रहीं। उन्होंने बिना नमक खाए इस व्रत को पूर्ण किया था।
भगवान विष्णु के छठवें अवतार भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था। इस दिन को परशुराम जयंती के तौर पर भी मनाया जाता है। भगवान परशुराम को आठ चिरंजीवियों में से एक माना गया है, मान्यता है कि वे आज भी धरती पर मौजूद हैं।
भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण, हयग्रीव का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था।
ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का अविर्भाव भी इसी दिन हुआ था।
उत्तराखंड के प्रसिद्द तीर्थ स्थल बद्रीनाथ धाम के कपाट भी अक्षय तृतीया के ही दिन पुनः खुलते हैं और इसी दिन से चारों धामों की पावन यात्रा प्रारम्भ हो जाती है।
वृन्दावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मंदिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। बाकी पूरे वर्ष चरण वस्त्रों से ही ढके रहते हैं।
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