जम्मू-कश्मीर में शहीद जवान का अंतिम संस्कार में दोनों बेटों ने दी मुखाग्नि

admin
Updated At: 06 Nov 2024 at 10:02 PM
आगर मालवा ,जम्मू-कश्मीर के राजौरी में सड़क हादसे में शहीद आर्मी जवान बद्रीलाल यादव (32) का सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। आगर मालवा के पैतृक गांव नरहल में शहीद के दोनों ने पार्थिव देह को मुखाग्नि दी। इस दौरान हजारों गांववालों ने नम आंखों से शहीद को अंतिम विदाई दी।
इससे पहले शहीद की पार्थिव देह को इंदौर एयरपोर्ट लाया गया। यहां से सड़क मार्ग से शव को पैतृक गांव नरवल लाया गया। पूरे रास्ते शव वाहन पर लोगों ने फूल बरसाकर शहीद को श्रद्धांजलि दी। इसके बाद नरवल में शव को अंतिम दर्शन के लिए रखा गया। यहां शहीद को गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। इस दौरान मंत्री गौतम टेटवाल ने भी पुष्प चक्र अर्पित किए।
शहीद के चाचा और रिटायर्ड फौजी निर्भय सिंह यादव ने बताया कि ‘बद्रीलाल 63वीं राष्ट्रीय राइफल्स बटालियन के इलेक्ट्रॉनिक & मैकेनिकल इंजीनियर (EME) विभाग में नायक पद पर थे। सोमवार रात को पेट्रोलिंग करने के दौरान यूनिट की एक गाड़ी खराब हो गई। बद्रीलाल और जयप्रकाश खराब गाड़ी को टो करके यूनिट ला रहे थे। तभी हादसा हो गया, जिसमें बद्रीलाल शहीद हो गए, जबकि जयप्रकाश घायल हैं।
परिवार ने बताया कि सोमवार शाम 7.30 बजे बद्रीलाल की पत्नी निशा से मोबाइल पर बात हुई थी। गाड़ी खराब होने की जानकारी देते हुए उसने कहा था कि एक घंटे में यहां से यूनिट पहुंच जाऊंगा, फिर कॉल करता हूं..। फोन कट करने के करीब एक घंटे बाद ही रात 8.40 बजे हादसा हो गया।
2012 में बतौर इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल इंजीनियर सेना में चयन के बाद बद्रीलाल की ट्रेनिंग भोपाल में हुई। उसके बाद वे जम्मू, पंजाब, साउथ सूडान, असम, सिकंदराबाद के बाद अभी जम्मू कश्मीर के राजौरी में पदस्थ थे।
बद्रीलाल का जन्म 2 मार्च 1992 को हुआ था। पिता हीरालाल खेती करते थे, जिनका निधन हो चुका है। परिवार में मां रूखमा बाई, पत्नी निशा, दो बेटे राजवीर और पीयूष हैं। बद्रीलाल का बड़ा भाई गोपाल पीथमपुर में केबल फैक्टरी में इंजीनियर है। दो बहनें भगवती और मीरा हैं। पिता के निधन और दोनों बेटों के गांव से बाहर चले जाने से खेती चाचा का परिवार संभाल रहा था।
चाचा निर्भय सिंह ने बताया कि मैंने सेना 1987 में जॉइन की थी। परिवार का पहला शख्स था जिसने आर्मी जॉइन की। मुझसे बातचीत होने से भतीजे बद्रीलाल को लगा था कि सेना में जाना चाहिए। वह तैयारी करने लगा, लेकिन उसके सीने की चौड़ाई कम थी। 2010 में यह जानकारी लगी, तो मैंने उसे महू बुलवाया। अपने साथ छह महीने रखा, टिप्स दिलवाए। उसने फिर तैयारी की और 2012 में बद्रीलाल की भर्ती हो गई।
परिवार ने बताया बद्रीलाल आखिरी बार गांव में अगस्त में एक महीने की छुट्टी पर आए थे। 1 सितंबर को ड्यूटी पर लौट गए थे। वे कहकर गए थे कि सालभर में मिलने वाली तीन महीने की छुट्टी में से एक महीने की अभी बची हुई है। इसलिए वे 3 दिसंबर को फिर छुट्टी पर गांव आने वाले थे।
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