पूर्व पीएम मनमोहन सिंह का निधन, दिल्ली एम्स में 92 साल की उम्र में ली अंतिम सांस, देशभर में शोक की लहर, कांग्रेस के कार्यक्रम रद्द

admin
Updated At: 27 Dec 2024 at 04:13 AM
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पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नहीं रहे। गुरुवार रात दिल्ली के एम्स में उनका निधन हो गया। वे 92 वर्ष के थे। गुरुवार रात अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी। उन्हें रात 8:06 बजे एम्स के आपातकालीन विभाग में भर्ती कराया गया। हालांकि, डॉक्टरों के अथक प्रयासों के बाद भी उन्हें नहीं बचाया जा सका। रात 9:51 बजे उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
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मनमोहन सिंह देश के ऐसे प्रधानमंत्री रहे, जो सबसे ज्यादा शिक्षित थे। प्रखर अर्थशास्त्री थे और प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचने वाले पहले अल्पसंख्यक भी थे। जब 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में देश में उदारीकरण का दौर शुरू हुआ, तब वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ही थे। इसके बाद उन्होंने 2004 से 2014 तक केंद्र में यूपीए की सरकार का नेतृत्व किया। वे 10 साल प्रधानमंत्री रहे। बराक ओबामा जैसे तत्कालीन विश्व नेता आर्थिक मामलों पर मनमोहन सिंह की समझ के कायल रहे।
कांग्रेस ने रैली रद्द की, राहुल-खरगे दिल्ली लौट रहे
इससे पहले, पूर्व प्रधानमंत्री की तबीयत बिगड़ने की जानकारी सामने आने पर कांग्रेस ने कर्नाटक में होने वाली अपनी रैली को रद्द कर दिया। राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे भी कर्नाटक से दिल्ली के लिए रवाना हो गए। प्रियंका गांधी भी एम्स पहुंच गईं। प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा ने ट्वीट किया, " प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी के निधन के बारे में जानकर मुझे गहरा दुख हुआ। उनके परिवार और प्रियजनों के प्रति मेरी गहरी संवेदनाएं। हमारे राष्ट्र के प्रति आपकी सेवा के लिए धन्यवाद। देश में आपके द्वारा लाई गई आर्थिक क्रांति और प्रगतिशील बदलावों के लिए आपको हमेशा याद किया जाएगा।"
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पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की शिक्षा
उन्होंने 1948 में पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक की शिक्षा पूरी की। उसके बाद उन्होंने अपनी आगे की शिक्षा ब्रिटेन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय से प्राप्त की। 1957 में उन्होंने अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी से ऑनर्स की डिग्री हासिल की। इसके बाद 1962 में उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नूफिल्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में डी. फिल किया। उन्होंने अपनी पुस्तक 'भारत में निर्यात और आत्मनिर्भरता और विकास की संभावनाएं' में भारत में निर्यात आधारित व्यापार नीति की आलोचना की थी।
दक्षिण आयोग के महासचिव भी थे मनमोहन सिंह
इसके बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में शिक्षक के रूप में कार्य किया जो उनकी अकादमिक श्रेष्ठता दिखाता है। इसी बीच में कुछ वर्षों के लिए उन्होंने यूएनसीटीएडी सचिवालय के लिए भी काम किया। इसी के आधार पर उन्हें 1987 और 1990 में जिनेवा में दक्षिण आयोग के महासचिव के रूप में नियुक्ति किया गया।
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डॉ मनमोहन सिंह का निधन 92 साल की आयु में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में निधन हो गया। लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हुआ। देश के 14वें प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) की सरकार का लगातार दो बार नेतृत्व किया। 2004 से 2014 तक प्रधानमंत्री रहे डॉ मनमोहन सिंह रिजर्व बैंक के गवर्नर भी रहे। उनके निधन से देशभर में शोक की लहर है। कांग्रेस पार्टी ने अपने तमाम कार्यक्रम रद्द कर दिए हैं। पीएम मनमोहन सिंह के निधन की पुष्टि दिल्ली कांग्रेस के आधिकारिक एक्स हैंडल पर की गई। इसके अलावा कई वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने भी अपने सोशल मीडिया हैंडल पर डॉ मनमोहन सिंह के निधन पर शोक प्रकट किया।
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पूर्व प्रधानमंत्री और दिग्गज अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह ने राज्यसभा से रिटायर होने के साथ ही अपने राजनीतिक जीवन को अलविदा कह दिया। अपने आर्थिक सुधारों की वजह से भारत के सुधार पुरुष कहे जाने वाले मनमोहन सिंह भले ही बिना किसी भव्य समारोह के अपने 33 साल के सार्वजनिक जीवन को विदा कह दी हो, लेकिन भारत को उदारीकरण की राह दिखाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री का अर्थशास्त्री से लेकर पीएम तक का सफर बेहद शानदार रहा। उनके कार्यकाल में भारत ने कई उपलब्धियां हासिल कीं, हालांकि कई बार उनकी आलोचना भी हुई।
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अपने मृदुभाषी और विनम्र स्वभाव के लिए जाने जाने वाले मनमोहन सिंह अक्तूबर 1991 में पहली बार राज्यसभा के सदस्य बने थे। इसके बाद वे लगातार छह बार उच्च सदन के सदस्य बने। वे कभी लोकसभा से नहीं आ सके। हालांकि 1999 में मनमोहन सिंह ने दक्षिण दिल्ली लोकसभा सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा जिसमें वे भाजपा के विजय कुमार मल्होत्रा से हार गए थे। ये उनके जीवन का पहला और आखिरी लोकसभा चुनाव था। एक अक्तूबर, 1991 से 14 जून, 2019 तक वे लगातार पांच बार असम से राज्यसभा सदस्य रहे। 2019 में दो महीने के अंतराल के बाद वे राजस्थान से फिर राज्यसभा आए। वे 1991 से 1996 तक नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री रहे। बाद में 2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री भी रहे थे। इतना ही नहीं, 21 मार्च, 1998 से 21 मई, 2004 तक वे राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे। इसके बाद जब वे 2004 और 2014 के बीच प्रधानमंत्री थे, तब भी वह सदन के नेता थे।
इतने पद पर रह चुके हैं मनमोहन सिंह
26 सितंबर, 1932 को गाह गांव (पाकिस्तान का पंजाब प्रांत) में जन्मे सिंह ने क्रमशः 1952 और 1954 में पंजाब विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक और मास्टर डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने 1957 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अपना इकोनॉमिक ट्रिपोस पूरा किया। फिर 1962 में वो ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डी.फिल किया। डॉक्टर सिंह विदेश व्यापार मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार, वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार और वित्त मंत्रालय के सचिव के रूप में कार्य किया। उन्होंने 1976 से 1980 तक भारतीय रिजर्व बैंक के निदेशक और फिर 1982 से 1985 तक गवर्नर के रूप में कार्य किया। वह योजना आयोग के उपाध्यक्ष और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
'कभी पपेट सीएम तो कभी मौनमोहन सिंह कहे गए'
बतौर पीएम और बाद में भी मनमोहन सिंह अक्सर आलोचनाओं से घिरे रहे। कभी भाजपा द्वारा उन्हें भ्रष्टाचार से घिरी सरकार चलाने तो कभी पपेट पीएम कहा गया। वहीं भाजपा ने कई बार उन्हें मौनमोहन सिंह कहा। उनपर गांधी परिवार से ऑर्डर लेकर सरकार चलाने के आरोप भी लगे। बावजूद इसके प्रधानमंत्री पद से रिटायर होते समय मनमोहन सिंह ने कहा था, 'मुझे ईमानदारी से उम्मीद है कि इतिहास मेरी समीक्षा करते वक्त दयाभाव रखेगा।'
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जब बतौर वित्त मंत्री की आर्थिक सुधारों की शुरुआत
देश के लिए डॉक्टर मनमोहन सिंह का सबसे बड़ा योगदान वित्त मंत्री के रूप में आर्थिक सुधारों की शुरुआत करना है। वर्ष 1991 में भारत का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संतुलन निराशाजनक घाटे में था। 1991 में इसका विदेशी कर्ज 35 बिलियन डॉलर से दोगुना होकर 69 बिलियन डॉलर हो गया था। भारत के पास पैसा और समय दोनों बहुत कम थे। तब हमारे चालू खाते के घाटे से निपटने के लिए एक आपातकालीन उपाय के रूप में, भारतीय रिज़र्व बैंक ने चालू खाते के घाटे को कम करने के लिए लगभग 400 मिलियन डॉलर जुटाने के लिए बैंक ऑफ इंग्लैंड के पास अपनी सोने की हिस्सेदारी गिरवी रख दी।
इसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधारों की एक श्रृंखला डॉक्टर सिंह ने शुरू की जिसे उन्होंने "मानवीय चेहरे के साथ सुधार" कहा। औद्योगिक नीति, 1991 की शुरुआत के साथ लाइसेंस राज को खत्म करने की प्रस्तावना लिखी गई। इस संकट से उबरने के लिए मनमोहन सिंह ने इस बजट में भारतीय बाजार को विदेशी कंपनियों के लिए खोल दिए।
इस कदम से सरकार को चंद महीनों में ही पहली सफलता मिली, जब दिसंबर 1991 में भारत सरकार विदेशों में गिरवी रखा सोना छुडवा कर आरबीआई को सौंपने में कामयाब रही। देश में ग्लोबलाइजेशन की शुरुआत 1991 में सिंह ने ही की थी। उन्होंने भारत को दुनिया के बाजार के लिए तो खोला ही, बल्कि निर्यात और आयात के नियमों को भी सरल बनाया। डॉक्टर मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर आर्थिक सुधारों की कवायद की और उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था की ओवरहॉलिंग में महत्वपूर्ण योगदान दिया है इससे कोई इंकार नहीं कर सकता।
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बीते कुछ समय से स्वास्थ्य ठीक नहीं
बीते कुछ समय से उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है। उन्हें अक्सर व्हीलचेयर पर राज्यसभा की कार्यवाही में भाग लेते देखा जाता था। हाल ही में राज्यसभा में सेवानिवृत्त सदस्यों की विदाई के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा के सदस्य के रूप में मनमोहसिंह की भूमिका की सराहना की थी। उन्होंने कहा था कि उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जाएगा। पीएम मोदी ने यह भी कहा था कि कई बार यह देखा गया था कि वह व्हीलचेयर पर रहते हुए वोट देने आए और उन्होंने लोकतंत्र को मजबूत बनाया।

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