पारिस्थितिकी के शिल्पकार हैं भारतीय हाथी, आखिर क्यों है इतने खास?

admin
Updated At: 31 Dec 2024 at 11:28 AM
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आकृति ताम्रकार
पारिस्थितिकी तंत्र के इंजीनियर कहे जाने वाले भारतीय हाथी न केवल आकर्षक जीव हैं, बल्कि हमारे पर्यावरण के संतुलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारतीय हाथी (एलीफस मैक्सिमस इंडिकस) एशियाई हाथी की चार उपजातियों में से एक है, और यह मुख्यतः भारत में पाया जाता है। हाथी जंगलों में रहना पसंद करते हैं, पर खुले मैदानों और घास के क्षेत्रों में भी भ्रमण करते रहते हैं।
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ये स्वभाव से खानाबदोश होते हैं और एक स्थान पर लंबे समय तक नहीं ठहरते। चलते-चलते ये हाथी वनों में बीजों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं, जिससे नए पेड़-पौधों का प्रसार होता है और जैव विविधता बनाए रखने में मदद मिलती है, अपने भारी पैरों से जमीन को दबाकर रास्ते बनाते हैं, जिससे छोटे जानवरों के लिए आवास उत्पन्न होते हैं और अन्य जीवों की आवाजाही में आसानी होती है, हाथी कई तरीकों से वृक्षों और वनस्पतियों की बढ़त को नियंत्रित करने में सहायता करते हैं।
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इनकी महत्ता के कारण ही हाथी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए 'अम्ब्रेला स्पीशीज' माने जाते हैं, क्योंकि इनका संरक्षण अनेक अन्य प्रजातियों का संरक्षण भी सुनिश्चित करता है।
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भारतीय उपमहाद्वीप के घने वनों व घास के मैदानों में पाया जाने वाला यह शाकाहारी विशालकाय जीव एक दिन में करीब 200 किलोग्राम तक भोजन करता है और 100 लीटर पानी पीता है। इस भोजन में मुख्य रूप से घास, पत्तियां, फल, और टहनियां शामिल होती हैं।
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यह भोजन प्रक्रिया केवल उनके जीवन को बनाए रखने के लिए आवश्यक नहीं है, बल्कि उनके द्वारा छोड़े गए बीज जंगल में पुनः अंकुरित होते हैं, जिससे वृक्षों की संख्या बढ़ती है और वन का संतुलन बना रहता है। इनके मल में भी अनेक प्रकार के बीज होते हैं, जो मृदा की उर्वरता और जैव-विविधता को बढ़ाते हैं।
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भारतीय संस्कृति व धार्मिक मान्यताओं में हाथी पूजनीय जीवों में से एक है, हाथियों को अति-पवित्र और शुभ माना जाता है, भगवान गणेश का स्वरूप हाथी के रूप में ही देखा जाता है, जो ज्ञान और समृद्धि के देवता माने जाते हैं। धार्मिक-आस्था और पर्यावरणीय संरक्षण दोनों को जोड़ते हुए, यह महत्वपूर्ण है कि हम हाथियों के संरक्षण के लिए प्रयास करें, ताकि हम अपनी सांस्कृतिक-धरोहर और जैविक विविधता को बनाए रख सकें।
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जब धरोहर की बात का संबंध हाथियों से हो और वत्सला का नाम ना आये, ऐसा नहीं हो सकता, पन्ना टाइगर रिजर्व की धरोहर बन चुकी दुनिया की सबसे उम्रदराज हथिनी है 'वत्सला' जिसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज हो चुका है।
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आजकल जंगलों की कटाई, खनन और शहरीकरण की वजह से हाथियों के प्राकृतिक-आवास का विखंडन तेजी से हो रहा है, जिससे हाथियों का दल व्याकुल हो जाता है और भोजन की तलाश में जुट जाता है। इसके कारण हाथियों को मानव बस्तियों के करीब आना पड़ता है, जिससे मानव-हाथी संघर्ष की घटनाएं बढ़ रही हैं, भारत में प्रत्येक वर्ष कई व्यक्ति मानव-हाथी संघर्ष में अपनी जान गंवाते हैं और लाखों की फसल और संपत्ति का भी नुकसान होता है।
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इस संघर्ष के चलते प्रतिशोध में हाथियों की भी हत्या हो जाती है, इस दयनीय स्थिति ने हाथियों के संरक्षण को और अधिक चुनौतीपूर्ण बना दिया है। ज्वलंत मुद्दे की बात की जाये तो , जलवायु परिवर्तन भी हाथियों के लिए कठिनाइयाँ लेकर आया है, सूखे के कारण पानी की कमी हो रही है, जिससे हाथियों को पानी और भोजन की खोज में लंबी दूरी तय करना पड़ता है, बढ़ते तापमान और अनियमित मौसम चक्रों के चलते, ये चुनौतियां और भी गंभीर हो जाती हैं, इससे हाथियों की शारीरिक और मानसिक स्थिति पर बुरा असर पड़ता है, जिससे उनकी जीवन-प्रत्याशा और प्रजनन-दर में भी गिरावट देखी जा रही है।
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आज हमारे भारत में दुनिया की 60% से अधिक एशियाई हाथीयों की आबादी उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय वनों में निवास करती है, जो मानव-हाथी संघर्ष से सबसे अधिक प्रभावित है। 75 वर्षों में हाथियों की संख्या में 50% की गिरावट हुई है। प्राकृतिक-आवास की क्षति और विखंडन ने उनके सामाजिक ढांचे को भी प्रभावित किया है, जिससे उनका आपसी संबंध कमजोर हो गया है और प्रजनन में भी कठिनाई हो रही है, इससे प्रजाति के भविष्य पर संकट मंडरा रहा है।
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भारत सरकार और अनेक संरक्षण संस्थाएं हाथियों के संरक्षण के लिए निरंतर प्रयासरत हैं, लेकिन आज के समय में हमें यह समझने की आवश्यकता है कि भारतीय हाथियों की सुरक्षा केवल सरकार या वन्यजीव संगठनों की जिम्मेदारी नहीं है। हाथियों के संरक्षण में समाज का प्रत्येक सदस्य अपनी भूमिका निभा सकता है, हाथियों के प्राकृतिक पर्यावास को बचाकर, हाथीदांत से बने सामानों के उपयोग को बंद कर, वन्यजीव गलियारे (कॉरिडोर) में हाथियों के निर्बाध आवागमन को गति देकर, अधिकाधिक जागरूकता के माध्यम से भी आप इस प्यारे जीव की रक्षा कर सकते हैं, जो पूरे पारिस्थितिक तंत्र के निर्माण में सहायक होगा।
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विश्व हाथी दिवस (12 अगस्त) जैसे विशेष दिन अवश्य मनायें, अन्य लोगों व छोटे बच्चों को कहानियों के माध्यम से हाथियों के प्रति सजग करें, यह कदम निश्चित ही हाथियों के संरक्षण में सहायक होगा, क्योंकि हाथियों का संरक्षण केवल एक जीव के संरक्षण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरी जैव विविधता के संरक्षण का एक अनिवार्य हिस्सा है।
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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए cg now उत्तरदायी नहीं है।
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