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धनतेरस, नरक चौदस, दिवाली, गोवर्धन और भाई दूज, पंचदिवसिय महापर्व की खास बातें

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admin

Updated At: 25 Oct 2024 at 01:57 AM

दिवाली का पर्व आने में अब बस कुछ ही दिन बचे हैं और इस पर्व को लेकर घर, दुकान हर जगह तैयारियां भी शुरू हो चुकी हैं। दीपावली का पर्व धनतेरस से दीपावली महापर्व शुरू होने में एक सप्ताह से भी कम का समय बचा है। दीपावली का पावन पर्व धनतेरस से आरंभ होकर भैया दूज पर जाकर संपन्न होता है। पांच दिनों के इस महापर्व में हर दिन विशेष महत्व रखता है। पंचदिवसिय महापर्व के पहले दिन धनतेरस, दूसरे दिन छोटी दिवाली, तीसरे दिन दीपवाली पर्व, चौथे दिन गोवर्धन पूजा और पांचवे दिन भैया दूज का पर्व मनाया जाता है। पांच दिन के पांच त्योहारों को त्योहारों का राजा भी कहा जाता है। आइए जानते हैं धनतेरस, नरक चौदस, दिवाली, गोवर्धन और भाई दूज के बारे में खास बातें और किस दिन कौन-सा पर्व मनाया जाएगा... पांच दिनों के महापर्व दीपावली में पहला पर्व है कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी। इस दिन समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में से एक आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरी हाथ में अमृत-कलश लिए प्रकट हुए थे। इनके दृष्टिपात से सूखी खेती हरित होकर लहलहा उठती थी। मृत जीवित हो आता था। विधाता के कार्य में यह बहुत बड़ा व्यवधान पड़ गया। सृष्टि में भयंकर अव्यवस्था उत्पन्न होने की आशंका के भय से देवताओं ने इन्हें छल से लोप कर दिया। वैद्यगण इस दिन धन्वंतरी जी का पूजन करते हैं और वर मांगते हैं कि उनकी औषधि व उपचार में ऐसी शक्ति आ जाए जिससे रोगी को स्वास्थ्य लाभ हो। सद‌्गृहस्थ इस दिन अमृत पात्र को स्मरण कर नए बर्तन घर में लाकर धनतेरस मनाते हैं। आज के दिन ही बहुत समय से चले आ रहे मनो मालिन्य को त्याग कर यमराज ने अपनी बहिन यमुना से मिलने हेतु स्वर्ग से पृथ्वी की ओर प्रस्थान किया था। गृहणियां इस दिन से अपनी देहरी पर दीपक दान करती हैं, जिससे यमराज मार्ग में प्रकाश देखकर प्रसन्न हों और उनके गृह जनों के प्रति विशेष करुणा रखें। इस वर्ष यह पर्व 29 अक्टूबर 2024 ई॰ मंगलवार को मनाया जाएगा। इसी दिन प्रातः सूर्यादय से ही त्रयोदशी तिथि का आगाज हो जाएगा। अतः उदय व्यापिनी त्रयोदशी होने के कारण प्रदोष व्रत के साथ-साथ प्रदोष काल में दीपदान का विशेष महत्व रहेगा। इस पर्व लड़ी का दूसरा मोती है 'चतुर्दशी।' भगवान श्रीराम के परम भक्त और पराक्रम के प्रतीक हनुमान की जयंती का दिन है। भगवान श्रीकृष्ण ने भी इस दिन अत्याचारी और दंभी नरकासुर का वध करके उसकी कैद से सोलह हजार कन्याओं और अन्य कैदियों को मुक्त किया था। इस असुर ने अपनी अंतिम इच्छा बड़ी विनय के साथ प्रकट की। भगवान श्रीकृष्ण ने वर दिया कि यह दिन सदैव नरक चौदस के नाम से याद किया जाएगा। इसी दिन भगवान विष्णु ने पराक्रमी और महान दानी राजा बलि के दंभ को अपनी कूटनीति से वामन रूप धारण कर नष्ट किया। इसे रूप चतुर्दशी भी कहते हैं। इस दिन पांच या सात दीये जलाने की परंपरा है। इस बार यह पर्व 30 अक्टूबर 2024 बुधवार को मनाया जाएगा। अब आता है इस लड़ी के मध्य दैदीप्यमान मंजूषा का उल्लास और उत्साह से भरा महान पर्व 'दीपावली' और महालक्ष्मी पूजन। यह अनेक घटनाक्रमों से युक्त दिन भी है। कार्तिक अमावस्या के दिन श्रीराम लंका विजय कर, सीता-लक्ष्मण-हनुमान व अन्य साथियों के साथ आकाश मार्ग से अयोध्या पधारे थे। जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर अहिंसा की प्रतिमूर्ति भगवान महावीर स्वामी भी इसी दिन निर्वाण को प्राप्त हुए थे। महान समाज सुधारक और आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद ने भी आज ही के दिन निर्वाण प्राप्त किया था। राम के स्वरूप को मानने वाले स्वामी रामतीर्थ परमहंस का तो जन्म व जल समाधि दोनों ही दिवाली के दिन हुए। सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद जी और पराक्रमी राजा विक्रमादित्य ने भी आज ही के दिन विजय पर्व मनाया था। इस वर्ष विक्रम संवत् 2081 में दीपोत्सव 30 अक्टूबर सन् 2024 को गुरुवार के दिन धर्मशास्त्र के अनुसार प्रदोषकाल एवं निशीथकाल व्यापिनी अमावस्या में मनाया जाएगा। कई वर्षों बाद स्वाति नक्षत्र से युक्त अमावस्या में दीपमाला होगी, जो समग्र राष्ट्र और समाज के लिए सुख, समृद्धि और सुभिक्षकारक सिद्ध होगी। दीपावली महापर्व में लक्ष्मी पूजन का प्रदोष काल में सर्वाधिक महत्व है। इसमें प्रदोषकाल गृहस्थियों एवं व्यापारियों के लिए और निशीथकाल आगम शास्त्र विधि से पूजन हेतु उपयुक्त है। चतुर्दशी या प्रतिपदा में दीपावली-महालक्ष्मी पूजन आदि कृत्य करने का शास्त्रीय विधान नहीं है। इस लड़ी का चौथा माणिक है कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा। यह पर्व भारत की कृषि-प्रधानता, पशुधन, उद्योग व व्यवसाय का प्रतीक है। इसी दिन श्री कृष्ण ने अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को छत्र की तरह धारण करके वनस्पति तथा लोगों की इंद्र के प्रकोप से रक्षा की थी। यह गोवर्धन पर्व अन्नकूट के नाम से विख्यात है। इस दिन नाना प्रकार के खाद्यान्न बनाए जाते हैं। घी, दूध, दही से युक्त इनका भोग भगवान को लगाया जाता है। शिल्पकार व श्रमिक वर्ग आज के दिन विश्वकर्मा का पूजन भी श्रद्धा भक्तिपूर्वक करते हैं। आज चहुंमुखी विकास और वृद्धि की कामना से दीप जलाए जाते हैं। इस वर्ष यह पर्व 2 नवंबर 2024, शनिवार को मनाया जाएगा। माला का पांचवा चमकता पर्व आता है- स्नेह, सौहार्द व प्रीति का प्रतीक यम द्वितीया अथवा भैया-दूज। इस दिन कार्तिक शुक्ल को यमराज अपने दिव्य स्वरूप में अपनी भगिनि यमुना से भेंट करने पहुंचते हैं। यमुना यमराज को मंगल तिलक कर स्वादिष्ट व्यंजनों का भोजन कराकर आशीर्वाद प्रदान करती हैं। इस दिन बहन-भाई साथ-साथ यमुना स्नान करें तो उनका स्नेह सूत्र अधिक सुदृढ़ होगा। इस बार भैया दूज 3 नवंबर रविवार को मनाया जाएगा।

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