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छत्तीसगढ़ के जंगलों में जल रहा जीवन : मानवजनित आग से भूमि, जल, वन्यजीव और आदिवासी आजीविका पर संकट, इसके समाधान की दिशा में ज़रूरी है कदम

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Sameer Irfan

Updated At: 23 Apr 2025 at 12:18 PM

गर्मियों की शुरुआत के साथ ही छत्तीसगढ़ के जंगलों में आग लगने की घटनाएं चिंताजनक रूप से बढ़ रही हैं। विशेषकर बस्तर, सरगुजा, कोरबा, रायगढ़, कांकेर, जशपुर और बलरामपुर जैसे वन क्षेत्रों में यह आग अब सिर्फ एक मौसमी आपदा नहीं, बल्कि स्थायी संकट का रूप ले चुकी है। इन जंगलों की आग ने न केवल हरे-भरे वनों को निगलना शुरू कर दिया है, बल्कि इसका सीधा असर जमीन, जल और जनजीवन पर भी दिखाई दे रहा है।

मानवजनित कारण और प्रशासनिक लापरवाही

राज्य के वन अधिकारियों और स्वतंत्र पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, छत्तीसगढ़ में लगने वाली अधिकांश जंगल की आग मानवजनित होती हैं। ग्रामीण इलाकों में खेत की सफाई, तेंदूपत्ता तोड़ाई से पहले पत्तों को सुखाने की प्रक्रिया, बीड़ी-सिगरेट के जलते अवशेष, और कभी-कभी अवैध लकड़ी कटाई के प्रयास इन आगों के पीछे मुख्य कारण बनते हैं। हालांकि वन विभाग द्वारा फायर अलर्ट सिस्टम और स्थानीय गश्त तैनात की जाती है, परंतु दूरस्थ वनांचलों में संसाधनों की कमी और कर्मचारियों की अनुपलब्धता के कारण आग समय पर नियंत्रित नहीं हो पाती।

वन्यजीव, आदिवासी और आजीविका पर असर

जंगलों की आग से सबसे अधिक प्रभावित वे वन्य जीव होते हैं जो इन वनों में आश्रय लेते हैं। विशेषकर बाघ, भालू, चीतल और साही जैसे जीवों का जीवन संकट में पड़ता है। आग के कारण उनके आवास नष्ट हो जाते हैं, और उन्हें रिहायशी इलाकों की ओर भागना पड़ता है जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं बढ़ रही हैं।

छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों की आजीविका का मुख्य स्रोत तेंदूपत्ता, महुआ, सालबीज, और लकड़ी जैसे वनोपज हैं। जब जंगल जलते हैं तो ये सारे संसाधन नष्ट हो जाते हैं और हजारों परिवारों की कमाई पर असर पड़ता है।

जल संकट की आहट

जंगल की आग न केवल मिट्टी की उर्वरता घटाती है, बल्कि बारिश के जल को अवशोषित करने की क्षमता को भी कम कर देती है। इससे भूजल स्तर गिरता है और नदी-नालों में मिट्टी भराव बढ़ता है। इसका सीधा असर गांवों और कस्बों में पानी की उपलब्धता पर पड़ रहा है। कई क्षेत्रों में आग के बाद जलस्रोत सूख गए हैं या प्रदूषित हो गए हैं।

प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने की कगार पर

वनों की लगातार हो रही क्षति से न केवल कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन बढ़ता है बल्कि जलवायु परिवर्तन भी तेज़ होता है। शोध बताते हैं कि जंगल की आग, जलवायु परिवर्तन का कारण और परिणाम दोनों है। आग के कारण जैव विविधता घट रही है और पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन उत्पन्न हो रहा है।

समाधान की दिशा में क्या ज़रूरी है

  • छत्तीसगढ़ में जंगलों को आग से बचाने के लिए कुछ ठोस और सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है:

  • स्थानीय समुदायों को प्रशिक्षण और मानदेय के साथ आग से रोकथाम में शामिल करना

  • वनों में आग से पहले चेतावनी देने वाली तकनीक (Early Warning System) को लागू करना

  • वन क्षेत्रों में स्थायी अग्निशमन दल और संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करना

  • प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को नियंत्रित करना और सामुदायिक वन प्रबंधन को बढ़ावा देना

  • स्कूलों और गांवों में जनजागरूकता अभियान चलाना

राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में स्थान

भारत के स्तर पर भी छत्तीसगढ़ एक उच्च संवेदनशील राज्य के रूप में चिन्हित है। ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच और MODIS डेटा के अनुसार, राज्य में हर वर्ष हजारों हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो जाते हैं। यह न केवल राज्य के पर्यावरण के लिए, बल्कि देश के जलवायु लक्ष्यों के लिए भी गंभीर चुनौती है।

जंगलों में लगने वाली आग अब केवल एक मौसमी समस्या नहीं रही। यह एक सतत और खतरनाक संकट बन गई है, जिससे लड़ने के लिए प्रशासन, समाज और विज्ञान को मिलकर काम करना होगा। छत्तीसगढ़ जैसे वन-समृद्ध राज्य में यदि अब भी ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में यह संकट जीवन और प्रकृति के संतुलन को और अधिक गंभीर रूप से प्रभावित करेगा।

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