नए कानूनों पर कदमताल के लिए पहले पुलिस को बहाना पड़ेगा पसीना, साक्ष्य जुटाने में कई चुनौतियां

admin
Updated At: 01 Jul 2024 at 12:12 PM
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भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत हर केस की जांच वैज्ञानिक व निष्पक्ष तरीके से होगी। इसके लिए हर पुलिसकर्मी को अपने मोबाइल पर ई-प्रमाण एप डाउनलोड करना जरूरी होगा। दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के मुताबिक, एप के जरिये मौके से जब्त सामान, निरीक्षण आदि की ऑडियो-वीडियो बनानी होगी। इन साक्ष्यों को 48 घंटे में अदालत में पहुंचाना होगा। दिल्ली पुलिसकर्मियों को कानून की धाराएं व एप की जानकारी हर जिला कार्यालय में दी जा रही है।
नए कानूनों में सभी राज्य सरकारों के लिए गवाह सुरक्षा योजना लागू करना अनिवार्य है, ताकि गवाहों की सुरक्षा व सहयोग सुनिश्चित की जाए और कानूनी प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता व प्रभाव बढ़ाया जाए। वहीं, बीएनएस में महिलाओं व बच्चों के खिलाफ अपराधों की जांच को प्राथमिकता मिलेगी। इसके तहत मामले दर्ज किए जाने के दो माह के भीतर जांच पूरी की जाएगी। पीड़ितों को 90 दिन के भीतर मामले की प्रगति पर नियमित रूप से जानकारी पाने का अधिकार होगा। पीड़ित महिलाओं व बच्चों को सभी अस्पतालों में निशुल्क प्राथमिक उपचार या इलाज मुहैया कराया जाएगा।
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वीडियो से छेड़छाड़ नहीं की लिखकर देना होगा
नए कानूनों के तहत किसी मामले के जांच अधिकारी को वीडियो तुरंत ऐप पर अपलोड करनी होगी। वीडियो को लोड करने पर ऐप में यूनिफार्म रिसोर्स लोकेटर यानी वेब एड्रेस (यूआरएल) और हैश वैल्यू दिखाई देगी। इनका उल्लेख केस डायरी में करना अनिवार्य होगा। आम आदमी हो या पुलिसकर्मी बीएनएस की धारा 36(4) के तहत ये लिखकर देगा कि वीडियो के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की गई है।
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ऐप से जुड़ीं आवश्यक धाराएं
धारा 105 - ऐप वाले मोबाइल से ऑडियो-वीडियो के जरिये तलाशी और जब्ती की रिकॉर्डिंग की जाएगी।
173(1)(2)(बी) - संज्ञेय मामलों में सूचना रिकार्ड करने के अलावा असाधारण परिस्थितियों में पीड़िता और शारीरिक व मानसिक रूप से अक्षम पीड़ितों से जुड़े मामले में तुंरत वीडियोग्राफी की जाएगी।
185(2) - जांच के दौरान तलाशी कार्रवाई की वीडियोग्राफी ऐप से होगी।
176(3)- 7 वर्ष या अधिक सजा वाले अपराधों में वीडियोग्राफी की जाएगी।
180(3) - पुलिस द्वारा गवाह की जांच, ऑडियो-वीडियो की गई रिर्कोडिंग।
ऐप में केस की ये जानकारियां होंगी: एफआईआर नंबर, वर्ष, डीडी नंबर, दिनांक, जिला, यूनिट, पुलिस स्टेशन का नाम व ऑडियो-वीडियो की जानकारी।
पीड़ित की ओर से बोले गए शब्दों को भी लिखा जाएगा
वीडियो बनाने के बाद संबंधित विवरण यानी बोले गए शब्दों को भी लिखा जाएगा। इसके अतिरिक्त वीडियो नोट भी जोड़े जा सकते हैं और सेव बटन दबाकर उन्हें ऐप में सुरक्षित रखा जा सकेगा। अपलोड किए गए साक्ष्य टैब में देखे जा सकते हैं।
आरोपी को पसंद को व्यक्ति को सूचना देनेे का अधिकार होगा
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नए कानून में जुड़ा एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि गिरफ्तारी की सूरत में व्यक्ति को अपनी पसंद के किसी व्यक्ति को अपनी स्थिति के बारे में सूचित करने का अधिकार मिलेगा। इससे गिरफ्तार व्यक्ति को तुरंत सहयोग मिल सकेगा। इसके अलावा गिरफ्तारी विवरण पुलिस थानों और जिला मुख्यालयों में प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाएगा, ताकि गिरफ्तार व्यक्ति के परिवार और मित्र महत्वपूर्ण सूचना आसानी से प्राप्त कर सकेंगे।
पीड़िता के बयान ऑडियो व वीडियो से लिए जाएंगे
पीड़िता को अधिक सुरक्षा देने व दुष्कर्म के किसी अपराध के संबंध में जांच में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए पीड़िता का बयान पुलिस की ओर से ऑडियो-वीडियो के जरिये दर्ज किया जाएगा। महिलाएं, पंद्रह वर्ष की आयु से कम उम्र के बच्चे, 60 वर्ष की आयु से अधिक के लोगों, दिव्यांग या गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों को पुलिस थाने आने से छूट मिलेगी और वे अपने निवास स्थान पर ही पुलिस सहायता प्राप्त कर सकेंगे।
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साक्ष्यों की वीडियोग्राफी करने में आ सकती है दिक्कत
नए कानूनों का प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले दिल्ली पुलिस के जवानों का कहना है कि घटनास्थल पर साक्ष्यों की प्रक्रिया को पूरा करने में दिक्कत आ सकती है। जवानों ने नाम उजागर नहीं करने के शर्त पर बताया कि नए कानून में भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत घटनास्थल, तलाशी लेने और जब्ती करने के दौरान की वीडियोग्राफी अनिवार्य है, लेकिन कई जगहों पर हालात ऐसे होते हैं, जहां पुलिसकर्मी को अपनी पहचान उजागर किए बिना ही कार्रवाई पूरी करनी पड़ती है।
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अपराधियों के पकड़ने के साथ-साथ हथियार भी बरामद किए जाते हैं, लेकिन पुलिसकर्मी हथियार लेकर आए बदमाश को पकड़ने के दौरान वीडियोग्राफी करेगा तो उसे पकड़ पाना मुमकिन नहीं होगा। ऐसे में घटनास्थल पर वीडियोग्राफी करना पुलिसकर्मियों के लिए भी घातक होगा।द्वारका जिले में तैनात एक हवलदार ने बताया कि किसी थाना इलाके में कुछ देर के अंतराल पर झपटमारी की कई वारदातें होती हैं। साथ ही, अन्य घटनाएं भी होती हैं। इन मामलों में एक ही जांच अधिकारी को कई मामले सौंपे जाते हैं।
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ऐसे में जांच अधिकारी के लिए सभी घटनास्थलों पर पहुंचना, वीडियोग्राफी करना और मामले की जांच करना एक साथ संभव नहीं हो पाएगा। घटना होने के बाद जांच अधिकारी से आला अधिकारी घटनास्थल के हालात के बारे में भी जानकारी लेते हैं, ऐसे में मोबाइल से वीडियो बना रहे जांच अधिकारी के लिए यह सब करना संभव नहीं हो पाएगा। एक सहायक उप निरीक्षक ने बताया कि दिल्ली के कुछ ऐसे इलाके हैं, जहां छोटे झगड़ों के दौरान दोनाें पक्षों की ओर से पथराव हो जाता है। ऐसे में जांच अधिकारी साक्ष्य के लिए वीडियोग्राफी करेगा या फिर हालात पर नियंत्रण करने की कोशिश करेगा।
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