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छठ पूजा में आज खरना का दिन, गुड़ की खीर बनाकर छठ मैय्या को लगाया जाएगा भोग, जानिए शुभ मुहूर्त...

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admin

Updated At: 06 Nov 2024 at 03:15 PM

पं धीरेंद्र शास्त्री ने करवाई घर वापस बोले- नक्सलवाद से ज्यादा खतरनाक धर्मांतरण धर्म डेस्क, भगवान सूर्य की उपासना का छठ पर्व कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की चतुर्थी मंगलवार से नहाय खाय के साथ शुरू हो गया है। छठ पूजा के पहले दिन श्रद्धालु नदी या तालाब में स्नान करते हैं और केवल शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। व्रतधारियों ने सात्विक भोजन कर व्रत का संकल्प लिया। सीएम साय ने कुनकुरी के सभी वार्डों मे मिनी गार्डन बनाने के लिए स्वीकृत किये ढाई करोड़ रुपये यह पर्व चार दिन तक मनाया जाता है। बिहार और उत्तर भारत में इस पर्व को पूर्ण श्रद्धाभाव और उल्लास के साथ मनाया जाता है। बिहार के लोग देश के किसी भी कोने में हो, छठ मनाने के लिए अपने घर जाने का प्रयास अवश्य करते हैं। घर लाना चाहते हैं लड्डू गोपाल की मूर तो पहले जरूर जान लें ये बातें इसका आरंभ नहाय खाय से हो जाता है यानी छठ पर्व शुरुआत में पहले दिन व्रती नदियों में स्नान करके भात, कद्दू की सब्जी और सरसों का साग एक समय खाती हैं। दूसरे दिन खरना किया जाता है जिसमें शाम के समय व्रती गुड़ की खीर बनाकर छठ मैय्या को भोग लगाती हैं और पूरा परिवार इस प्रसाद को खाता है। सुप्रीम कोर्ट ने UP मदरसा एक्ट की वैधता बरकरार रख इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला पलटा तीसरे दिन छठ का पर्व मनाया जाता है जिसमें अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पर्व को समापन किया जाता है। शरद पवार का चुनावी राजनीति से संन्यास का संकेत बोले- कहीं तो रुकना पड़ेग खरना 2024 का शुभ मुहूर्त ब्रह्म मुहूर्त: 04:59 बजे से 05:52 बजे तक सूर्योदय: सुबह 06:45 बजे पर सूर्यास्त: शाम 09:26 बजे पर खरना के जरूरी नियम खरना में शाम को सूर्यास्त के बाद पीतल के बर्तन में गाय के दूध में खीर बनाते हैं। व्रत करने वाला व्यक्ति ये खीर खाता है, लेकिन खीर खाते समय अगर उसे कोई आवाज सुनाई दे जाए, तो वह खीर वहीं छोड़ देता है। इसके बाद पूरे 36 घंटों का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है। तीसरे दिन यानी छठ पूजा सात नवम्बर के दिन शाम को सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन सुबह से उपवास करने वाला व्यक्ति निराहार व निर्जल रहता है। प्रसाद में ठेकुआ बनाते हैं। शाम को सूर्य पूजा करने के बाद में रात में उपवास करने वाला निर्जल रहता है। चौथे दिन 8 नवंबर को सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत पूरा होता है।

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