हसदेव जंगल और गंधमर्दन पर्वत को खतरा: : भाजपा सरकार पर विनोद चंद्राकर का तीखा हमला

Sameer Irfan
Updated At: 19 May 2025 at 09:45 PM
महासमुंद, 19 मई 2025 – पूर्व संसदीय सचिव एवं महासमुंद के पूर्व विधायक विनोद सेवनलाल चंद्राकर ने प्रदेश और देश की प्राकृतिक धरोहरों को लेकर भाजपा सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा शासित राज्य ऐतिहासिक, पौराणिक और जैवविविधता से भरपूर क्षेत्रों को निजी कंपनियों, विशेषकर अदानी समूह, को सौंप कर नष्ट करने पर आमादा हैं।
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सुप्रीम कोर्ट के आदेश की याद दिलाई
श्री चंद्राकर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को निर्देशित किया है कि आरक्षित वन भूमि के किसी भी व्यक्ति या संस्था को किए गए आबंटन की जांच की जाए। उन्होंने मांग की कि छत्तीसगढ़ सरकार को सर्वोच्च न्यायालय के इन निर्देशों का पालन करते हुए हसदेव अरण्य क्षेत्र में तत्काल प्रभाव से कटाई रोकनी चाहिए।
हसदेव – मध्य भारत के फेफड़े
चंद्राकर ने कहा, "हसदेव जंगल को मध्य भारत के फेफड़े के रूप में जाना जाता है। यहां की पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से तापमान में अनियंत्रित वृद्धि और पर्यावरणीय संकट उत्पन्न हुआ है। भाजपा सरकार इस विनाश को जानबूझकर बढ़ावा दे रही है।"
उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा शासित ओडिशा में भी गंधमर्दन पर्वत क्षेत्र को अदानी को सौंप दिया गया है, जबकि यह पर्वत औषधीय वनस्पतियों और पौराणिक महत्व से जुड़ा है। उन्होंने कहा कि रामायण काल से जुड़ा यह स्थल लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है और इसके आसपास का क्षेत्र बाक्साइट खनन के नाम पर उजाड़ा जा रहा है।
कांग्रेस सरकार ने लगाई थी रोक, भाजपा ने हटाई
विनोद चंद्राकर ने याद दिलाया कि कांग्रेस शासनकाल में भूपेश बघेल सरकार ने विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर हसदेव क्षेत्र में पेड़ कटाई पर रोक लगाई थी, जिसे भाजपा ने भी समर्थन दिया था। लेकिन अब, मोदी सरकार के दबाव में छत्तीसगढ़ की साय सरकार ने अदानी को कोयला खनन की अनुमति दे दी है।
आदिवासियों पर लाठीचार्ज और संघर्ष
उन्होंने बताया कि 2 महीने पूर्व परसा कोयला खदान क्षेत्र में पेड़ कटाई के विरोध में प्रदर्शन कर रहे आदिवासियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया, जिसमें हसदेव बचाओ संघर्ष समिति के नेता रामलाल करियाम समेत कई आदिवासी घायल हुए। इसके बावजूद कोयला खनन के लिए 2.73 लाख से अधिक पेड़ों को काटने की योजना जारी है। अब तक 94,460 पेड़ पहले ही काटे जा चुके हैं।
पर्यावरण, वन्यजीव और आजीविका पर संकट
चंद्राकर ने कहा कि इस कटाई से हाथी-मानव संघर्ष, वन्य जीव संकट, और आदिवासियों की आजीविका पर गहरा असर पड़ेगा। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने समय रहते निर्णय नहीं बदला, तो यह क्षेत्र सिर्फ भूगोलिक मानचित्र पर एक दाग बनकर रह जाएगा।
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