संसद में केद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के संविधान पर चर्चा के दौरान बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर पर दिए एक बयान को लेकर विपक्ष लामबंद हो गया है। ऐसा हंगामा हुआ कि संसद की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी और पूरा विपक्ष सड़कों पर आ गया है। वहीं, इस मामले में घिरे अमित शाह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा, जिन्होंने जीवन भर बाबा साहेब का अपमान किया, उनके सिद्धांतों को दरकिनार किया, सत्ता में रहते हुए बाबा साहेब को भारत रत्न नहीं मिलने दिया, आरक्षण के सिद्धांतों की धज्जियां उड़ाईं, वे लोग आज बाबा साहेब के नाम पर भ्रांति फैलाना चाहते हैं। वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अमित शाह पर आंबेडकर का अपमान करने का आरोप लगाते हुए उनका इस्तीफा मांग लिया। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी सभी ब्लू कलर के कपड़े में विरोध करने पहुंच गए।
नेहरू कैबिनेट से आंबेडकर को क्यों देना पड़ा था इस्तीफा, चुनाव भी हारे, अब कांग्रेस-बीजेपी के चहेते कैसे बन गए बाबासाहेब?

admin
Updated At: 20 Dec 2024 at 05:29 PM
नई दिल्ली: 14 नवंबर, 1956 की बात है, जब नेपाल की राजधानी काठमांडू में विश्व धर्म संसद की शुरुआत हो रही थी। इस सम्मेलन का उद्घाटन तत्कालीन नेपाल के राजा महेंद्र ने किया था। नेपाल के राजा ने बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर से मंच पर अपने पास बैठने को कहा था। यह देख दुनिया को यह अंदाजा हो गया था कि बौद्ध धर्म में बाबा साहेब का कद काफी बड़ा था।
भीमराव आंबेडकर की पत्नी सविता आंबेडकर ने अपनी जीवनी 'डॉ. आंबेडकरांच्या सहवासात' में इस बारे में लिखा है। भारज लौटते वक्त बाबासाहेब ने बौद्ध धर्म के तीर्थस्थलों का दौरा किया। वो 30 नवंबर को दिल्ली लौटे, जहां संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो चुका था। उस वक्त खराब सेहत के बाद भी आंबेडकर 4 दिसंबर को संसद पहुंचे और राज्यसभा की कार्यवाही में हिस्सा लिया। यह बाबा साहेब का संसद का आखिरी दौरा था। इसके बाद 6 दिसंबर, 1956 को आंबेडकर का निधन हो गया। जानते हैं आंबेडकर के नेहरू से रिश्तों की कहानी। इन्हीं आंबेडकर को लेकर अब कांग्रेस और बीजेपी में ठन गई है। यह भी जानेंगे कि कांग्रेस और बीजेपी अब आंबेडकर को क्यों गले लगाने पर उतारू हो रही हैं?
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साल 1952 में आंबेडकर उत्तर मुंबई लोकसभा सीट से लड़े हालांकि, कांग्रेस ने आंबेडकर के ही पूर्व सहयोगी एनएस काजोलकर को टिकट दिया और आंबेडकर चुनाव हार गए। कांग्रेस ने कहा कि आंबेडकर सोशल पार्टी के साथ थे इसलिए उनका विरोध करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। उस वक्त नेहरू दो बार निर्वाचन क्षेत्र का दौरा किया और आखिर में आंबेडकर 15 हजार वोटों से चुनाव हार गए। आंबेडकर को 1954 में कांग्रेस ने बंडारा लोकसभा उपचुनाव में एक बार फिर हराया। दरअसल, जवाहरलाल नेहरू कभी आंबेडकर पर भरोसा नहीं करते थे और वह कभी उन्हें पसंद नहीं करते थे।
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आंबेडकर की समाज सुधारक वाली छवि कांग्रेस के लिए चिंता का कारण थी। यही वजह है कि पार्टी ने उन्हें संविधान सभा से दूर रखने की योजना बनाई। संविधान सभा में भेजे गए शुरुआती 296 सदस्यों में आंबेडकर नहीं थे। आंबेडकर सदस्य बनने के लिए बॉम्बे के अनुसूचित जाति संघ का साथ भी नहीं ले पाए। उस समय के बॉम्बे के मुख्यमंत्री बीजी खेर ने पटेल के कहने पर सुनिश्चित किया कि आंबेडकर 296 सदस्यीय निकाय के लिए न चुने जाएं।
आंबेडकर जब बॉम्बे में असफल रहे तो उनकी मदद को बंगाल के दलित नेता जोगेंद्रनाथ मंडल सामने आए। उन्होंने मुस्लिम लीग की मदद से आंबेडकर को संविधान सभा में पहुंचाया। यही मंडल बाद में पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री बने।
जिन जिलों के वोटों से आंबेडकर संविधान सभा में पहुंचे थे वो हिंदु बहुल होने के बावजूद पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बन गए। नतीजतन आंबेडकर पाकिस्तान की संविधान सभा के सदस्य बन गए। भारतीय संविधान सभा की उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई। पाकिस्तान बनने के बाद भारत में रहे बंगाल के हिस्सों में से दोबारा संविधान सभा के सदस्य चुने गए।
जब कहीं से उम्मीद नहीं बची तो आंबेडकर ने धमकी दी कि वो संविधान को स्वीकार नहीं करेंगे और इसे राजनीतिक मुद्दा बनाएंगे। माना जाता है कि इसके बाद ही कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें जगह देने का फैसला किया। इसी दौरान बॉम्बे के एक सदस्य एमआर जयकर ने संविधान सभा में अपना पद से इस्तीफा दे दिया। तब कांग्रेस ने फैसला किया कि एमआर जयकर की खाली जगह आंबेडकर लेंगे।
आजादी से पहले जब जवाहरलाल के नेतृत्व में पहली अंतरिम सरकार बनी थी तो आंबेडकर नेहरू कैबिनेट में कानून मंत्री थे। हालांकि, अनुसूचित जातियों और हिंदू कोड बिल को लेकर आंबेडकर कांग्रेस की नीतियों से निराश थे। 11 अप्रैल, 1947 को आंबेडकर ने हिंदू कोड विधेयक, 1947 को सदन में पेश किया था लेकिन बिना किसी चर्चा के गिर गया। आंबेडकर ने कहा कि प्रधानमंत्री के आश्वासन के बावजूद हिंदू कोड बिल संसद में गिरा दिया गया। इन्हीं मतभेदों के चलते आंबेडकर को 27 सितंबर, 1951 को अंतरिम सरकार से इस्तीफा देना पड़ा था। उन्होंने शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन नामक संगठन बनाया था।
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