Zakir Hussain Death: अलविदा उस्ताद, मशहूर तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन का 73 साल की आयु में निधन, अमेरिका के अस्पताल में ली अंतिम सांस

admin
Updated At: 16 Dec 2024 at 01:10 PM
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मौसिकी की दुनिया में जिनके तबले की थाप एक अलहदा पहचान रखती है, वो उस्ताद जाकिर हुसैन नहीं रहे। 73 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में सोमवार सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली। उस्ताद जाकिर हुसैन को रविवार रात को अमेरिका के एक अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया गया था। उन्हें रक्तचाप की समस्या थी।
https://youtu.be/SOIsptWYbQI
उस्ताद जाकिर हुसैन उस्ताद अल्ला रक्खा खां के पुत्र थे। तबले की तालीम उन्होंने पिता से ही ली थी। उस्ताद जाकिर हुसैन की शख्सियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने महज 11 साल की उम्र में अमेरिका में पहला कॉन्सर्ट किया। यानी तकरीबन 62 साल तक उनका और तबले का साथ नहीं छूटा। उन्होंने तीन ग्रैमी अवॉर्ड जीते। पद्म विभूषण से भी नवाजे गए। तबले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा दिलाने में उनका अहम योगदान रहा।
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संगीत की दुनिया में मिले कई पुरस्कार
जब तबले का जिक्र आता है तो सबसे बड़े नामों में उस्ताद जाकिर हुसैन का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उन्होंने न सिर्फ अपने पिता उस्ताद अल्ला रक्खा खां की पंजाब घराने (पंजाब बाज) की विरासत को आगे बढ़ाया, बल्कि तबले के शास्त्रीय वादन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ले गए। उस्ताद को संगीत की दुनिया का सबसे बड़ा ग्रैमी अवॉर्ड 1992 में 'द प्लेनेट ड्रम' और 2009 में 'ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट' के लिए मिला। इसके बाद 2024 में उन्हें तीन अलग-अलग संगीत एलबमों के लिए एकसाथ तीन ग्रैमी मिले। 1978 में जाकिर हुसैन ने कथक नृत्यांगना एंटोनिया मिनीकोला से शादी की थी। उनकी दो बेटियां हैं, अनीसा कुरैशी और इसाबेला कुरैशी।
https://cgnow.in/news/shah-said-will-end-naxalism-before-march-31-2026/
फिल्मों में भी अभिनय किया
1983 में जाकिर हुसैन ने फिल्म 'हीट एंड डस्ट' से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा। इसके बाद 1988 में 'द परफेक्ट मर्डर', 1992 में 'मिस बैटीज चिल्डर्स' और 1998 में 'साज' फिल्म में भी उन्होंने अभिनय किया।
https://youtu.be/NXWCxj8ff_A
तबले को इस तरह आम लोगों से जोड़ते थे...
उस्ताद जाकिर हुसैन तबले को हमेशा आम लोगों से जोड़ने की कोशिश करते थे। यही वजह थी कि शास्त्रीय विधा में प्रस्तुतियों के दौरान बीच-बीच में वे अपने तबले से कभी डमरू, कभी शंख तो कभी बारिश की बूंदों जैसी अलग-अलग तरह की ध्वनियां निकालकर सुनाते थे। वे कहते थे कि शिवजी के डमरू से कैलाश पर्वत से जो शब्द निकले थे, गणेश जी ने वही शब्द लेकर उन्हें ताल की जुबान में बांधा। हम सब तालवादक, तालयोगी या तालसेवक उन्हीं शब्दों को अपने वाद्य पर बजाते हैं। ...गणेश जी हमारे कुलदेव हैं।
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