सैयद समीर इरफ़ान "सिंहासन पर बैठकर भी खुद को आम रखते हैं,हर महफ़िल में अपनों के बीच नाम रखते हैं।राजसी ठाट पर सरलता का पहरा,रणविजय सिंह जूदेव, हैं जशपुर का गहना।"राजा रणविजय प्रताप सिंह जूदेव, जशपुर रियासत के राजा विजय भूषण सिंह क़े पोते और स्वर्गीय उपेंद्र सिंह जूदेव के पुत्र, छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक प्रमुख हस्ती हैं। उन्होंने अपने दादा,पिता और चाचा, स्वर्गीय दिलीप सिंह जूदेव, से प्रेरणा लेकर समाज सेवा और राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई है।7 मार्च 1969 को जन्मे रणविजय सिंह जूदेव ने अपने परिवार की समृद्ध विरासत को आगे बढ़ाते हुए शिक्षा और सामाजिक कार्यों में गहरी रुचि दिखाई। उनकी प्रारंभिक शिक्षा जशपुर में हुई, जहां उन्होंने स्थानीय संस्कृति और परंपराओं के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा का समन्वय किया।अपने चाचा दिलीप सिंह जूदेव के साथ रणविजय सिंह ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में सक्रिय भूमिका निभाई। 2007 में, उन्हें छत्तीसगढ़ राज्य युवा आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने युवाओं के कल्याण और विकास के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए। दिलीप सिंह जूदेव क़े देहावसान क़े बाद में, उन्हें राज्यसभा सांसद के रूप में भी चुना गया, जहां उन्होंने छत्तीसगढ़ और विशेषकर जशपुर क्षेत्र के मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया।राजनीति के अलावा, रणविजय सिंह ने सामाजिक क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वे वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठनों के साथ मिलकर आदिवासी समुदायों के उत्थान और धर्मांतरण रोकने के लिए सक्रिय रहे हैं। उनका मानना है कि शिक्षा और सांस्कृतिक जागरूकता के माध्यम से समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है।रणविजय सिंह जूदेव अपने परिवार के साथ जशपुर के आराम निवास महल में रहते हैं। वे अपनी पारिवारिक परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत को संजोते हुए आधुनिकता के साथ तालमेल बिठाते हैं। उनकी पत्नी और बच्चे भी सामाजिक कार्यों में सक्रिय भागीदारी निभाते हैं, जिससे परिवार की समाज सेवा की परंपरा आगे बढ़ रही है।राजा रणविजय प्रताप सिंह जूदेव का जीवन समर्पण, सेवा और नेतृत्व का प्रतीक है। उन्होंने अपने पूर्वजों की विरासत को न केवल संजोया है, बल्कि उसे नए आयाम भी दिए हैं। उनकी राजनीतिक और सामाजिक यात्रा आने वाले समय में छत्तीसगढ़ और देश के लिए प्रेरणास्पद साबित होगी।""किसी सोने की चमक से नहीं, लोहे की तपिश से बना हूँ,मैं राजा हूँ, क्योंकि अपने लोगों के लिए जिया हूँ।रणविजय नाम है उस आग का,जो बुझकर भी धधकने को तैयार रहता है।"राजपारिवार क़े प्रमुख जशपुर रियासत क़े राजा ही है फिर भी उनमें कोई अभिमान नहीं है वे बेहद सरल स्वभाव क़े निर्मल और सहृदय और मिलनसार है राजा वाला अभिमान उन्हें नहीं हैं आज भी जहाँ कुछ लोग मिल जाते है चाहे वो चाय की दुकान की महफिल हो या चार लोगों का जमावड़ा वे उनसे मिलकर कुशल क्षेम ले ही लेते है, यह सिर्फ शहरों में नहीं गाँव क़े लोगों को भी वही सम्मान देते, राजनीतिक विरोधियों को भी वो बराबर सम्मान देतेहै यह राजपारिवार का संस्कार है यह कह सकते है कि रणविजय प्रताप सिंह जूदेव की सादगी बेमिसाल है दिलीप सिंह जूदेव क़े स्वर्ग वासी होने क़े बाद जशपुर से दिल्ली क़े संसद तक पहुँचने वाले पहले व्यक्ति है भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें राज्य सभा में 2014 में भेजा है आज भी जशपुर रियासत में होने वाले धार्मिक आयोजनों पूजा पाठ में रियासत क़े राजा ही प्रमुख भूमिका निभाते है चाहे विजय दशमी का दस दिवसीय उत्सव हो या इंद्र पूजा या फिर अन्य अनुष्ठान हो राजा क़े बिना अधूरा माना जाता है हर आयोजन में राजा की उपस्थिति होती है जिसे राजा रणविजय सिंह जिम्मेदारी क़े रियासत कालीन परंपरा का निर्वहन करते है विशेष कर जशपुर रियासत क़े 700 गाँव में जहाँ रियासत की सत्ता मानी जाती है वहाँ उन्हें आज भी राजसी सम्मान ही दिया जाता है"राजसी खून, पर दिल फकीर का रखते हैं,हर गरीब के चेहरे पर नूर सा रखते हैं।राजपाठ जिनकी रगों में बहता है,पर हर इंसान को अपना कहते हैं।"