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शिव महापुराण कथा में पहाड़ी कोरवाओं को जोड़ने की अनोखी पहल: : विजय आदित्य सिंह जूदेव के साथ पहाड़ी कोरवाओं ने सुनी शिव महापुराण की कथा

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Vijay Aditya Singh Judeo’s Unique Initiativeजशपुरनगर – जशपुर के मयाली गांव में चल रही सात दिवसीय शिव महापुराण कथा में तीसरे दिन एक ऐतिहासिक क्षण देखने को मिला, जब जशपुर राजपरिवार के युवा और कर्मठ नेतृत्वकर्ता विजय आदित्य सिंह जूदेव के प्रयास से छत्तीसगढ़ की विशेष संरक्षित जनजाति पहाड़ी कोरवा समुदाय के लोग शिव कथा में शामिल हुए। यह पहली बार था जब इस अति पिछड़ी जनजाति को सनातन संस्कृति और शिव महापुराण के दिव्य प्रवचनों से रूबरू होने का अवसर मिला।शिव महापुराण कथा के दौरान जब प्रख्यात कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा भगवान शिव की करुणा और दया पर प्रवचन दे रहे थे, उसी समय कथा स्थल पर पहुंचे पहाड़ी कोरवाओं को देखकर पूरा पंडाल भाव-विभोर हो उठा। विजय आदित्य सिंह जूदेव के इस प्रयास की हर किसी ने सराहना की।पहाड़ी कोरवाओं ने पहली बार शिव महापुराण कथा सुनीविशेष संरक्षित जनजाति पहाड़ी कोरवा जो मुख्य रूप से जंगलों और पहाड़ियों में बसे हुए हैं, आज भी मुख्यधारा से बहुत दूर हैं। शिक्षा, चिकित्सा और सामाजिक जागरूकता से वंचित यह समुदाय भगवान शिव के प्रति गहरी श्रद्धा रखता है, लेकिन धार्मिक आयोजनों में उनकी भागीदारी न के बराबर रही है। विजय आदित्य सिंह जूदेव ने इस अनदेखी को दूर करने का बीड़ा उठाया और पहाड़ी कोरवाओं को सनातन संस्कृति से जोड़ने की एक अद्वितीय पहल की।पटिया से आए पहाड़ी कोरवा रोहन राम, जतरू राम, खोरतो राम और सोहराई राम ने कथा के बाद अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि "पहली बार हमें शिव महापुराण की कथा सुनने का सौभाग्य मिला। हमें भगवान शिव की महानता और सनातन धर्म की विशालता का बोध हुआ। जो ज्ञान हमें मिला, उसे हम अपने गांव में भी साझा करेंगे।"भगवान शिव की कथा से करुणा और सेवा का संदेशकथा के तीसरे दिन पंडित प्रदीप मिश्रा ने जीवन में करुणा और दया के महत्व पर प्रवचन देते हुए कहा कि "भगवान शिव ने हमेशा परोपकार और करुणा को प्राथमिकता दी। उन्होंने विष पीकर भी देवताओं को अमृत प्रदान किया, जिससे पता चलता है कि त्याग और सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है।"उन्होंने आगे कहा कि "कठिन समय में भगवान शिव की भक्ति और स्तुति ही वह संबल है, जो व्यक्ति को संघर्ष से उबारती है। जो लोग दया और करुणा को दुर्बलता समझते हैं, वे बहुत बड़ी भूल करते हैं।"सनातन धर्म को पुनर्जीवित करने में विजय आदित्य सिंह जूदेव की भूमिकाविजय आदित्य सिंह जूदेव का यह प्रयास सिर्फ सामाजिक समरसता तक सीमित नहीं था, बल्कि यह सनातन धर्म के पुनर्जागरण की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम भी था। उनके नेतृत्व में पहाड़ी कोरवा समाज के लोग केवल कथा सुनने ही नहीं आए, बल्कि उन्हें व्यासपीठ पर आरती में भी विशेष रूप से आमंत्रित किया गया, जिससे उन्हें सनातन संस्कृति में आत्मीयता और अपनापन महसूस हुआ।शिव महापुराण कथा में सांसद राधेश्याम राठिया, राज्य महिला आयोग की सदस्य प्रियम्वदा सिंह जूदेव, मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की धर्मपत्नी कौशल्या साय और उनके परिवार के अन्य सदस्य भी उपस्थित थे, जिन्होंने इस पहल को ऐतिहासिक करार दिया।पहाड़ी कोरवाओं ने जताया आभारकथा समाप्त होने के बाद पहाड़ी कोरवाओं ने विजय आदित्य सिंह जूदेव का हृदय से आभार व्यक्त किया और कहा कि उनके प्रयास से उन्हें एक नई दिशा और आध्यात्मिक संबल मिला है। इस पहल से यह साबित हो गया कि सनातन धर्म किसी वर्ग या जाति तक सीमित नहीं, बल्कि यह पूरी मानवता का धर्म है।सनातन संस्कृति की पुनर्स्थापना की ओर एक और कदमविजय आदित्य सिंह जूदेव के इस प्रयास से यह स्पष्ट हो गया कि वे केवल राजपरिवार के सदस्य नहीं, बल्कि सनातन धर्म और समाज सेवा के सच्चे सेवक हैं। उनकी यह पहल यह संदेश देती है कि धर्म का उद्देश्य केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं, बल्कि समाज के सबसे वंचित तबके तक आध्यात्मिक ज्ञान और सांस्कृतिक जागरूकता पहुंचाना भी है।आज, जब पूरा देश सनातन संस्कृति की पुनर्स्थापना की ओर बढ़ रहा है, ऐसे में विजय आदित्य सिंह जूदेव जैसी युवा पीढ़ी का यह प्रयास निश्चित रूप से एक नई क्रांति का संकेत है। उनकी यह पहल भविष्य में समाज के हर वर्ग को जोड़ने और सनातन संस्कृति को एक नई ऊंचाई तक ले जाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी।

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