साल 2025 का अंतिम पूर्ण चंद्रग्रहण 7 सितंबर की रात एक ऐतिहासिक खगोलीय घटना बन गया। इस दौरान चंद्रमा ने अपना पारंपरिक रूप छोड़ कर एक लालिमा युक्त रंग धारण किया, जिसे ‘ब्लड मून’ कहा जाता है। यह दृश्य न केवल भारत, बल्कि ब्रिटेन, फ्रांस, दक्षिण अफ्रीका, तुर्किये, थाईलैंड, चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया सहित दुनिया के 77% हिस्से में देखा गया।
रात 9:57 बजे शुरू होकर 1:26 बजे तक चले इस चंद्रग्रहण की पूर्णता का चरण रात 11:01 से 12:23 बजे तक रहा, यानी 82 मिनट तक चंद्रमा पूरी तरह पृथ्वी की छाया में रहा। इस दौरान चंद्रमा पर सूर्य का प्रकाश सीधा नहीं पड़ा और वह गहरी सुर्खी लिए हुए नजर आया।
पेरिगी के करीब होने से चांद दिखा थोड़ा बड़ा
खगोलविदों के अनुसार, यह चंद्रग्रहण और भी खास इसलिए था क्योंकि यह चंद्रमा के पेरिगी (पृथ्वी के सबसे नजदीकी बिंदु) पर पहुंचने से 2.7 दिन पहले घटित हुआ। इस कारण चांद अपने सामान्य आकार से थोड़ा बड़ा दिखाई दिया, जिससे ब्लड मून का प्रभाव और भी स्पष्ट हो गया।
भारत में लाखों लोग बने गवाह
दिल्ली-एनसीआर, लखनऊ, गुवाहाटी, तिरुवनंतपुरम, चेन्नई और बंगलूरू जैसे शहरों से चंद्रग्रहण की मनमोहक तस्वीरें सामने आईं। देशभर के तारामंडलों, खगोल विज्ञान संस्थानों और शिक्षण संस्थाओं में लोगों ने बड़ी संख्या में इस दृश्य का आनंद लिया।
नेहरू तारामंडल पहुंची एक महिला दर्शक ने कहा, “हम चंद्रग्रहण और उसकी प्रक्रिया को देखने के लिए बेहद उत्साहित हैं।” बंगलूरू स्थित भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान में मौजूद सहाना ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, “यह पूरी तरह लाल नहीं था, लेकिन चंद्रमा का हल्का भूरा रंग भी बहुत आकर्षक था। मैं ब्लड मून के लिए रात 11 बजे का बेसब्री से इंतजार कर रही थी।”
सूटक काल: धार्मिक मान्यताओं में विशेष महत्व
जहाँ एक ओर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसे एक रोमांचक अनुभव माना गया, वहीं हिंदू धर्म में चंद्रग्रहण से पहले लगने वाले सूतक काल को अशुभ माना गया। यह ग्रहण से लगभग 9 घंटे पहले शुरू होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दौरान पूजा-पाठ, भोजन, शुभ कार्य आदि वर्जित माने जाते हैं।
राहु और केतु के प्रभाव के कारण इस समय को नकारात्मक ऊर्जा से युक्त माना जाता है। सूतक काल में ध्यान, जप और आत्मचिंतन को विशेष रूप से फलदायी माना गया है।
ब्लड मून: शक्ति, परिवर्तन और चेतावनी का प्रतीक
ज्योतिषीय दृष्टि से यह ग्रहण महत्वपूर्ण रहा। विशेषज्ञों के अनुसार, यह ग्रहण राहु और गुरु के प्रभाव वाले नक्षत्रों में हुआ, जिससे मानसिक तनाव, सामाजिक अस्थिरता और सत्ता संघर्ष जैसी संभावनाएं बन सकती हैं।
यह समय आम जनता के लिए भी सतर्कता का है — कार्यस्थल पर तनाव, रिश्तों में गलतफहमी और योजनाओं में रुकावट जैसे अनुभव संभव हैं।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया: खगोल प्रेमियों की आँखों का तारा बना चांद
चीन के शंघाई, जापान के ओसाका, यूक्रेन के ओडेसा, कुवैत, जर्मनी के बर्लिन, इराक के बगदाद और दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग जैसे शहरों में भी लाखों लोगों ने टेलिस्कोप और अन्य उपकरणों के माध्यम से इस खगोलीय नज़ारे का आनंद उठाया।
खगोल विज्ञान के जानकारों का मानना है कि एशिया और ऑस्ट्रेलिया में यह ग्रहण देखने का अनुभव सबसे शानदार रहा, क्योंकि इन क्षेत्रों में यह घटना उच्च कोण पर और लंबे समय तक देखी गई।
अगली बार कब दिखेगा ऐसा चंद्रग्रहण?
भारतीय अंतरिक्ष भौतिकी केंद्र, कोलकाता के निदेशक संदीप चक्रवर्ती के अनुसार, “सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा का एक रेखा में आना एक दुर्लभ खगोलीय घटना है। ऐसा पिछली बार 31 जनवरी 2018 को हुआ था और अगली बार 31 दिसंबर 2028 को देखने को मिलेगा।”
विज्ञान और श्रद्धा के बीच संतुलन
2025 का यह अंतिम चंद्रग्रहण न केवल एक खगोलीय चमत्कार था, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि कैसे विज्ञान और धर्म, दोनों दृष्टिकोणों से इसे समझा जा सकता है। जहाँ एक ओर यह ब्रह्मांड की विशालता और उसकी प्रक्रियाओं की झलक देता है, वहीं दूसरी ओर यह मानव संस्कृति और विश्वासों से भी जुड़ा हुआ है।आकाश के रंगों ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि ब्रह्मांड में छिपे रहस्य आज भी हमारी कल्पनाओं से कहीं आगे हैं।