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मर्यादा और भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं भगवान श्री राम

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admin

Updated At: 17 Apr 2024 at 02:17 PM

राम भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं, नैतिक मूल्यों के प्राण हैं, मानवता के अधिष्ठाता हैं। वास्तविक अर्थ में राम ही समूची संस्कृति हैं। राम की संस्कृति से आशय भारतीय संस्कृति से है। हमें राम की संस्कृति मन, वचन, कर्म से जीवन के प्रत्येक क्षण में ग्रहण करने की आवश्यकता है ताकि हर ओर राम राज्य व्याप्त हो। आइए राम की संस्कृति को जानें और यदि हो सके तो उसका अनुकरण भी करें। विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक भारतीय संस्कृति भारत देश के शीश का मुकुट है। भारतीय जनमानस की यह एक अमूल्य निधि है, भारत की माटी का यह गौरव है। भारतीय संस्कृति के आयाम - धर्म, दर्शन, साहित्य, संगीत आदि में एक नाम, जिसके स्मरण मात्र से अंतस में जिजीविषा, धैर्य एवं साहस का प्रस्फुटन होता है, जीवनदायी शक्ति प्राप्त होती है, वह है- राम। राम भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं, नैतिक मूल्यों के प्राण हैं, मानवता के अधिष्ठाता हैं। वास्तविक अर्थ में राम ही समूची संस्कृति हैं। राम की संस्कृति से आशय भारतीय संस्कृति से है। राम भारतीय संस्कृति के वे सूर्य हैं, जिन्होंने पूरे राष्ट्र को दिशा- दिगंत अपने आदर्श गुणों की रश्मि से दैदीप्यमान किया है। राम का चरित्र एक ऐसा चरित्र है जो जीवन का पथ प्रदर्शक है, दिग्दर्शक है। हमें राम की संस्कृति मन, वचन, कर्म से जीवन के प्रत्येक क्षण में ग्रहण करने की आवश्यकता है ताकि हर ओर राम राज्य व्याप्त हो। आइए राम की संस्कृति को जानें और यदि हो सके तो उसका अनुकरण भी करें। पिता से प्रेम रघुकुल शिरोमणि राम यदि चाहते तो वनवास नहीं भी जाते। उन्हें वनवास हेतु कोई बाध्य भी नहीं कर सकता था और फिर पिता भी तो यही चाहते थे कि वे वन को न जाएँ परंतु पिता द्वारा अपनी विमाता को दिए गए वचन का मान रखने हेतु वे सारा राजसी वैभव त्यागकर वन जाने के लिए सहर्ष ही तैयार हो गए। कल्पना कीजिए, क्या कोई सहज ही अपने राजमहल को छोड़कर वल्कल वस्त्र धारण कर जंगल की पर्णकुटी में 14 वर्षों तक रह सकता है केवल इसलिए कि पिता का वचन झूठा न हो? पिता का मस्तक ऊँचा रखने वाले, पिता के लिए अपने सुखों का त्याग करने वाले एक आदर्श पुत्र की यह छवि केवल राम के चरित्र में दृष्टिगत होती है। प्रत्येक देश, काल, परिस्थिति में प्रत्येक व्यक्ति को सत्ता की लालसा रही है और इसे पाने के लिए उसका अभिलाषी मन जब- तब विद्रोह पर भी उतरा है। इतिहास हमें बताता है कि मुगलकाल में सत्ता पाने के लिए औरंगजेब ने अपने ही सगे भाई दारा शिकोह की हत्या करवा दी और अपने पिता शाहजहाँ को बंदी बना लिया। यहाँ तक कि सम्राट अशोक के बारे में भी यही कथन है कि उसने भी सिंहासन पाने के लिए अपने भाइयों की हत्या की। सत्ता की चाह में कुछ भी कर जाने वालों के लिए राम एक दृष्टांत हैं। इस स्थिति से अवगत होने पर भी कि अयोध्या में अब उनके स्थान पर भाई भरत का राज्याभिषेक होगा और राम को पूरे चौदह वर्ष का वनवास भोगना होगा, वे तटस्थ ही रहे और भरत के प्रति उनके मन में तनिक भी ईष्या, द्वेष नहीं जागा। उनका यह गुण भ्रातृ-प्रेम, भाईचारे का एक सशक्त उदाहरण है जो महर्षि वाल्मीकि की रामायण, तुलसी की मानस के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगा। (अन्य भाषाओं में रचित रामायण व राम पर आधारित रचना- ग्रन्थों में भी) पत्नी से प्रेम राम एक आदर्श पति की संकल्पना हैं जिन्होंने अपनी पत्नी सीता से आजीवन प्रेम किया और अपने पति के धर्म को निष्ठापूर्वक निभाया। अपने पूरे जीवनकाल में उन्होंने पत्नी सीता के समकक्ष किसी को भी स्थान नहीं दिया। वर्तमान समाज में वैवाहिक संस्था के विखंडन और विवाह जैसे पवित्र बंधन को एक हँसी- खेल बना दिए जाने की स्थिति में राम एक अपवाद हैं। सीता का हरण होने पर राम उनकी खोज में व्याकुल होकर वन- वन भटकते रहे, उनका पता मिलने पर सौ योजन के अथाह सागर पर सेतु बनाया, रावण से युद्ध लड़ा और अंतत: उन्हें पुन: पाया। अयोध्या आने पर सीता के परित्याग के समय राम के सामने दूसरे विवाह का भी विकल्प था, यदि वे चाहते। वे राजा थे, ऐसा करना उनके लिए कोई कठिन कार्य नहीं था परंतु उन्होंने आजीवन सीता के सिवाय अपनी पत्नी के रूप में किसी और की अपने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की। आज पत्नी के घर में रहते हुए ही श्रीमान पति बिन बताए बाहर जाकर भारतीय हिन्दी सिनेमा से प्रेरित होकर निर्देशक डेविड धवन की फिल्म बीबी नम्बर वन का रीमेक बना लेते हैं या शादी में इतना भरपूर दहेज न मिल सका, जिससे उनका जीवन सुख- सुविधापूर्ण हो जाता तो तलाक देकर दूसरा विवाह पलक झपकते ही कर लेते हैं या फिर अपने हक के लिए लड़ रही पत्नी को ही रास्ते से हटा देने में जरा भी हिचकते नहीं। ऐसी मानसिकता से ग्रसित व्यक्तियों को राम का मनन करके अपनी सोच पर घड़ों पानी डालना चाहिए। राम का स्त्री दृष्टिकोण महान है। आज अपने आस-पास देखने पर हम पाते हैं कि स्त्रियों के प्रति समाज का दृष्टिकोण कितना ओछा है? हमारी बहन- बेटियाँ आज असुरक्षा की भावना से घिरी हुई हैं। उनके साथ शोषण, बलात्कार जैसी वीभत्स घटनाएँ हो रही हैं, जो हृदय विदारक हैं। यदि समाज राम के इस गुण का अनुपालन करे तो सचमुच राम राज्य आ जाएगा। राम ने अपने पूरे जीवन काल में अपनी पत्नी सीता के अतिरिक्त किसी अन्य स्त्री को आँख उठाकर नहीं देखा। नारी सम्मान के प्रति वे सदैव संकल्पबद्ध रहे। नारी के उद्घार के लिए वे प्रति पल प्रतिबद्ध रहे, अहिल्या का प्रसंग ये इंगित करता है। रामायण में जितने भी नारी पात्र हैं, उन समस्त नारी पात्रों के साथ राम ने सदैव आदरपूर्ण व्यवहार किया, राम ने मनुस्मृति के श्लोक (यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।) को जीवन में ज्यों का त्यों चरितार्थ किया। राम- से राजा केवल राम ही हैं समाज में होने वाले जातिगत भेदभाव, ऊँच- नीच के भेदभाव से हम सब सभी भली- भाँति परिचित हैं। भारतीय सामाजिक व्यवस्था में यह एक बहुत बड़ा अवरोध है। राम सामाजिक एकता, सामाजिक सौहार्द व आपसी सद्भाव का संदेश हमें शबरी के पास जाकर और उनके जूठे बेर खाकर देते हैं। राम का भील जाति की शबरी की कुटिया में जाना इस बात का प्रमाण है कि कोई मनुष्य छोटा- बड़ा नहीं, सब एक बराबर हैं। हमें हर एक प्राणी के लिए अपने हृदय में समता का भाव रखना चाहिए। राज-पाट के मोह में किए गए कितने ही प्रपंच विगत के पन्नों पर अंकित हैं परंतु राम- से राजा केवल राम ही हैं। राम ने आदर्श राजा का वह चरित्र हमारे समक्ष प्रस्तुत किया, जिसने रामराज्य की स्थापना की। रामराज्य की अवधारणा एक आदर्श शासन की अवधारणा है जो राज्य की खुशहाली का प्रतीक है। राम वह राजा हैं, जिनके लिए प्रजा का सुख ही सर्वोपरि है, अन्य कुछ नहीं और इसके लिए समय आने पर वे अपनी जीवनसंगिनी सीता जो कि पौराणिक ग्रंथों के अनुसार उस समय गर्भवती थीं, उन तक का परित्याग कर देते हैं। इस बात पर कहीं- कहीं विद्वज्जन राम को कटघरे में भी खड़ा कर देते हैं। सर्वप्रथम तो यह कि राम कोई साधारण प्राणी नहीं अपितु भगवान विष्णु के अवतार थे। स्वाभाविक है कि उन्हें सीता (जो कि स्वयं माँ लक्ष्मी का अवतार थीं) की वस्तुस्थिति ज्ञात थी परंतु उन्होंने प्रजा के हित में निर्णय लिया। राम वास्तव में लोकतंत्र की सच्ची परिभाषा हैं। निस्संदेह सीता का परित्याग एक सामान्य घटना नहीं है। इस पर रोष होना आम बात है। यहाँ इस पर भी ध्यान देना आवश्यक है कि राम ईश्वर के अवतारी थे। जो ईश्वर की लीला जानता है, वही समझ सकता है कि राम के अवतार में ईश्वर की यह लीला इस बात का संकेत है कि एक राजा के रूप में राज्य के सुख- चैन के लिए यदि अपना सर्वस्व भी दाँव पर लगाना पड़े तो भी पीछे नहीं हटना चाहिए। पूरे जगत से प्रेम राम की संस्कृति में जीव-प्रेम, जीव-दया का भी विशेष महत्व है। राम जीव- प्रेम, जीव- दया के पर्याय हैं। वनवासी जीवन में उनका पशु- पक्षियों से मित्रवत व्यवहार रहा। वे सीता के रावण द्वारा हरण कर लिए जाने की घटना के समय वन में विचरण करने वाले खग- मृग से अपना दुख साझा करते हैं। जटायु द्वारा सीता को बचाने के प्रयास में घायल होने पर घायल जटायु को अपनी गोद में रखकर उसकी सेवा- सुश्रुषा करते हैं। जटायु के उनकी गोद में प्राण त्याग देने पर पिता समझकर उसका अंतिम संस्कार व पिंडदान करते हैं। सेतु निर्माण के दौरान एक गिलहरी द्वारा अपने शरीर पर अपनी सामर्थ्य अनुसार समुद्र की रेत को चिपकाकर सेतु पर जाकर झाड़ देने के कार्य का सम्मान कर राम ने उसकी पीठ पर हाथ फेरकर अपना आशीष दिया। यह प्रसंग इस बात का द्योतक है कि हमें हर एक के अपनी सामर्थ्य से किए गए सहयोग के प्रति आदर भाव रखना चाहिए। उनकी सेना वानर सेना थी तथा पक्षीकुल के अनेक जीवों की सहभागिता से उन्होंने लंका पर चढ़ाई की और विजय पाई। राम की संस्कृति में उनके लोक नायक होने का साक्ष्य मिलता है। राम में नेतृत्व का अद्भुत कौशल था। उनमें प्रबंधन की योग्यता थी। अपने मित्रगणों पर प्रेम, विश्वास व यथास्थिति उन्हें नेतृत्व का अवसर प्रदान कर उन्होंने सौ योजन का समुद्र पार कर लंका विजय प्राप्त की। राम जैसा मित्र कहां राम सच्चे मैत्री भाव को परिभाषित करते हैं और बताते हैं कि जीवन में मित्र कैसा होना चाहिए। राम ने सुग्रीव से मित्रता करने के पश्चात उसके भाई बालि का वध करके उसकी पत्नी से उसका मेल कराया व राज्य वापस दिलाया। राम की दृष्टि में सच्चे मित्रों के सुख- दुख साझा होते हैं। ऐसा तथाकथित मित्र जो मुँह पर तो प्रिय बोले परंतु पीछे बुराई करे, हमें ऐसे मित्र से दूर रहना चाहिए। लंका विजय के पश्चात राम विभीषण को लंका सौंप देते हैं। भाई लक्ष्मण के कहने पर कि क्यों न लंका में ही रहा जाए, वह उत्तर देते हैं - अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। (वाल्मीकि रामायण) राम का यह कथन मातृभूमि के प्रति उनके अनन्य, अगाध प्रेम को प्रकट करता है, जिसके आगे सोने से मढ़ी हुई लंका भी कुछ नहीं। राम प्रकृति प्रेमी हैं। रामराज्य में प्रकृति प्रेम, पर्यावरण- संरक्षण आदि का वर्णन तुलसी ने अपनी रामचरितमानस में किया है। रामराज्य में प्रकृति के नैनाभिराम दृश्य मानस की चौपाइयों में जीवंत हुए हैं, जहाँ प्रकृति की छाया में राम रम रहे हैं। पग-पग पर मर्यादा का पालन करने वाले मर्यादापुरुषोत्तम राम सहृदयता, दयालुता करुणा के साथ पारिवारिक मूल्यों, सामाजिक मूल्यों की आधारशिला हैं। ऐसे ही हैं भारतीय संस्कृति के राम तथा ऐसी ही है राम की संस्कृति, जिसका अनुसरण जीवन का पथ प्रशस्त करने वाला है।

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