प्राइवेट स्कूलों की मनमानी: : मनचाही फ़ीस वसूली, ड्रेस-स्टेशनरी पर भी खुली लूट!

Faizan Ashraf
Updated At: 30 Mar 2025 at 08:17 PM
रायपुर। नए शैक्षणिक सत्र की आहट के साथ ही सीबीएसई से मान्यता प्राप्त इंग्लिश मीडियम स्कूलों की मनमानी फिर चरम पर पहुंच गई है। बड़े निजी स्कूल अपनी मनमानी फीस वसूली, ड्रेस और स्टेशनरी की खरीद पर जबरन दबाव बनाकर अभिभावकों को आर्थिक बोझ तले दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। राज्य सरकार के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद ये नामी स्कूल खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं।
फ़ीस के नाम पर खुली लूट!
रायपुर समेत प्रदेशभर में संचालित इन तथाकथित प्रतिष्ठित स्कूलों ने अपने पुराने छात्रों के अभिभावकों को फरमान जारी कर दिया है—एक हफ्ते के भीतर फीस जमा करें, वरना प्रवेश रद्द समझा जाएगा।
यही नहीं, कई स्कूल अप्रैल के पहले ही सप्ताह में सालभर की फीस का 50% हिस्सा एडवांस जमा कराने के लिए दबाव बना रहे हैं। जिन स्कूलों की वार्षिक फीस 60,000 से 1 लाख रुपये के बीच है और जिनमें 2000 से 3000 छात्र पढ़ते हैं, वे करोड़ों रुपये पहले ही महीने में वसूल कर लेते हैं। अभिभावकों की मजबूरी यह है कि वे इस तानाशाही फरमान का विरोध भी नहीं कर सकते क्योंकि बच्चों की शिक्षा का सवाल होता है।
ड्रेस-स्टेशनरी के नाम पर कमीशनखोरी!
अभिभावकों का आरोप है कि स्कूलों ने ड्रेस, किताबें, स्टेशनरी और यहां तक कि जूते-बस्ते तक के लिए विशेष दुकानों से खरीदने की बाध्यता थोप दी है। इन दुकानों पर सामान्य से कई गुना ज्यादा कीमत वसूली जाती है, लेकिन स्कूलों का कमीशन तय रहता है। कई स्कूल तो सालों से इस गोरखधंधे में लिप्त हैं और सरकार-प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है।
छोटे निजी स्कूल सरकार के निर्देशों का पालन कर फीस में सीमित बढ़ोतरी करते हैं, लेकिन नामी स्कूलों पर कोई नियंत्रण नहीं है। अधिकांश स्कूलों में यदि एक परिवार के एक से अधिक बच्चे पढ़ते हैं तो 20-25% फीस में छूट दी जाती है, लेकिन रायपुर के कुछ प्रतिष्ठित स्कूलों ने इस नियम को ताक पर रख दिया है।नामी संस्थानों में इस छूट का कोई अता-पता नहीं, उल्टा वहां भी फीस का 50% एडवांस जमा कराने का दबाव डाला जाता है।
अप्रैल से जून तक अधिकांश स्कूल मात्र 20-25 दिन ही खुलते हैं, लेकिन ट्रांसपोर्ट फीस पूरे तीन महीने की वसूली जाती है। यानी गर्मी की छुट्टियों में भी जब बसें चलती ही नहीं, तब भी अभिभावकों को फीस भरनी पड़ती है। यह न केवल आर्थिक शोषण है बल्कि खुली लूट है, जिस पर सरकार की चुप्पी सवाल खड़े करती है।
राज्य सरकार कब जागेगी?
सरकार हर साल निजी स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाने की बातें करती है, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि बड़े स्कूलों के रसूख और मोटे मुनाफे के आगे सरकारी आदेश बेमानी साबित हो रहे हैं। अगर सरकार ने जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो यह लूट आगे भी जारी रहेगी और अभिभावकों को शिक्षा माफ़िया के आगे मजबूर रहना पड़ेगा।
अब वक्त आ गया है कि सरकार कड़े फैसले ले और इन नामी स्कूलों की तानाशाही पर लगाम लगाए, ताकि हर माता-पिता अपने बच्चों को बिना दबाव और शोषण के अच्छी शिक्षा दिला सकें।
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