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Chhath Puja : : नहाय खाय के साथ आज से चैती छठ की शुरुआत, लोक आस्था के पर्व में भक्तिमय माहौल

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Faizan Ashraf

Updated At: 01 Apr 2025 at 08:01 AM

"Chaiti Chhath Begins Amid Chaitra Navratri and Ram Navami Preparations"

चैती छठ महापर्व की शुरुआत, लोक आस्था के पर्व में भक्तिमय माहौल

चैत्र नवरात्र और रामनवमी की तैयारियों के बीच लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व चैती छठ आज से आरंभ हो गया है। इस पर्व का पहला दिन 'नहाय-खाय' के रूप में मनाया जाता है। श्रद्धालु गंगा स्नान कर व्रत का संकल्प ले रहे हैं।

पिछले वर्ष कार्तिक छठ (डाला छठ) के दौरान प्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा के निधन के बाद, इस वर्ष भी उनके छठ गीत भक्तों के बीच गूंज रहे हैं। "पटना के घाट पर..." और "करिहा क्षमा छठी मईया..." जैसे गीतों की धुनें बिहार के विभिन्न हिस्सों में सुनाई दे रही हैं। हालाँकि कार्तिक छठ लगभग हर बिहारी परिवार में धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन चैती छठ मुख्य रूप से मन्नत पूरी होने पर किया जाता है। यह पर्व सुख-समृद्धि और मनोकामना पूर्ति के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है।

कार्तिक छठ जैसी मान्यताएं, ऋतु फल का विशेष महत्व

लोक आस्था के इस महापर्व में कार्तिक छठ की तरह ही नियम-कायदे लागू होते हैं। मंगलवार को 'नहाय-खाय' की रस्म पूरी की जाएगी, जिसमें श्रद्धालु स्नान कर शुद्धता का पालन करेंगे। गंगा तटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है, वहीं जहाँ गंगा नहीं है, वहाँ लोग गंगाजल से स्नान कर अपनी आस्था प्रकट कर रहे हैं।

चैती छठ की एक विशेष परंपरा है कि इसे आमतौर पर पोखरों पर नहीं किया जाता, बल्कि श्रद्धालु अपने घरों में ही इस व्रत का पालन करते हैं। चूंकि इस समय कार्तिक माह में उपलब्ध फल आसानी से नहीं मिलते, इसलिए ऋतु फल का विशेष ध्यान रखा जाता है।

बुधवार को खरना, शुक्रवार को अंतिम अर्घ्य

कार्तिक छठ की तरह ही चैती छठ व्रत का पालन मुख्य रूप से महिलाएं करती हैं। इस बार महापर्व की शुरुआत 1 अप्रैल से हुई है। सोमवार को 'नहाय-खाय' की रस्म के साथ व्रती शुद्धता का पालन कर पर्व के लिए गेहूं धोकर सुखाएंगे। इसके बाद अरवा चावल, कद्दू की सब्जी और दाल का भोजन किया जाएगा। पूरे परिवार को भी स्नान कर भोजन ग्रहण करने की परंपरा है।

मंगलवार 2 अप्रैल को 'खरना' की रस्म होगी, जिसमें व्रती दिनभर उपवास रखेंगी और शाम को आम की लकड़ी के जलावन पर मिट्टी के चूल्हे में प्रसाद तैयार करेंगी। इसमें खीर और सोहारी (गुड़ की रोटी) प्रमुख रूप से बनाई जाती है। पूजा के बाद व्रती प्रसाद ग्रहण करेंगी और इसके साथ ही 36 घंटे का निर्जला उपवास प्रारंभ हो जाएगा।

गुरुवार 4 अप्रैल को व्रती अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देंगी, जबकि शुक्रवार 5 अप्रैल को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर महापर्व का समापन किया जाएगा। इस दौरान घाटों और पूजन स्थलों पर विशेष श्रद्धा और आस्था का माहौल रहेगा।

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