जशपुर — ज़मीन नामांतरण जैसे आम आदमी से जुड़े अत्यंत संवेदनशील मामले में तीन लाख रुपये रिश्वत की मांग करने वाले एक भ्रष्ट तहसीलदार को न्यायालय ने दोषी करार देते हुए तीन वर्ष की सश्रम सजा सुनाई है। यह वही अधिकारी है जो जशपुर जिले में पदस्थ रहते हुए भ्रष्टाचार के आरोप में रंगे हाथ पकड़ा गया था।
इस सजा के बाद प्रशासनिक हलकों में हड़कंप मच गया है, वहीं जनसामान्य के मन में यह सवाल गूंज रहा है — क्या गरीब, आदिवासी और आम नागरिक ऐसे रिश्वतखोर अधिकारियों की मौजूदगी में न्याय की आशा कर सकते हैं?
भ्रष्टाचार बना है सिस्टम का हिस्सा?
जशपुर जिले सहित राज्य के अनेक तहसील एवं एसडीएम न्यायालयों में हजारों प्रकरण वर्षों से लंबित हैं। पीड़ितों का आरोप है कि चपरासी से लेकर बाबू तक, कोई भी बिना पैसा लिए सीधे मुंह बात नहीं करता। गरीबों के जमीन संबंधी मामले, सीमांकन, नामांतरण या बंटवारा — हर फाइल ‘सरकारी दरों’ पर आगे बढ़ती है। अधिकारी-कर्मचारी वर्ग के एक हिस्से ने इसे ‘अपना चारागाह’ बना लिया है।
हाय गरीबों की और सजा ऊपर वाले की
स्थानीय नागरिकों ने आक्रोश जताते हुए कहा कि “ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों को जब तक कठोरतम सजा नहीं दी जाएगी, व्यवस्था सुधरने वाली नहीं है।” यह भी कहा जा रहा है कि गरीबों की हाय कभी न कभी असर जरूर दिखाती है और जब ऊपरवाले का डंडा चलता है, तो आवाज तक नहीं निकलती।
अब जरूरी है व्यापक सुधार
इस प्रकरण के बाद राज्य शासन और राजस्व विभाग की जिम्मेदारी बनती है कि वह ऐसे भ्रष्ट अफसरों की पहचान कर उन पर त्वरित कार्रवाई करे। साथ ही जरूरत है कि नामांतरण जैसे जनहित से जुड़े कार्यों को पूरी तरह डिजिटली पारदर्शी और जवाबदेह बनाया जाए।
भ्रष्टाचार के खिलाफ यह सजा एक उदाहरण है, लेकिन जब तक व्यवस्था की जड़ों में बैठा भ्रष्टाचार नहीं हटेगा, तब तक आम जनता को न्याय मिलना मुश्किल है। समय रहते प्रशासन और सरकार को जनविश्वास की पुनःस्थापना करनी होगी।