खगोलीय घटना: फिर प्रकट हो रहा है हरा धूमकेतु, करीब 50 हजार साल बाद पृथ्वी के पास आया

admin
Updated At: 11 Feb 2023 at 01:47 PM
आजकल ग्रीन कॉमेट के नाम से मशहूर एक धूमकेतु दुनिया भर में चर्चा का विषय बना हुआ है। यह धूमकेतु करीब 50 हजार साल बाद पृथ्वी के पास आया है, जो 11-12 फरवरी के बीच मंगल ग्रह के पास पहुंचेगा। तब इसे उत्तरी गोलार्द्ध से देखा जा सकता है। प्राचीनकाल में धूमकेतुओं का दिखना अपशकुन माना जाता रहा है। पर जैसे-जैसे वैज्ञानिक सिद्धांतों में प्रगति हुई, धूमकेतुओं की प्रकृति और संरचना को समझना आसान हो गया और अब ये कौतूहल का विषय नहीं रहे। आज धूमकेतुओं के बारे में बहुत सारी वैज्ञानिक जानकारियां उपलब्ध हैं। इसके पीछे जलती हुई पूंछ दिखाई देती है, इसलिए इसे पुच्छल तारा भी कहते हैं। हमारे सौर मंडल के अंतिम छोर पर अरबों धूमकेतु सूर्य का चक्कर लगा रहे हैं। कोई धूमकेतु जब पृथ्वी से टकरा जाए, तो तबाही ला सकता है, पर ऐसा अभी होने वाला नहीं है।
ग्रीन कॉमेट नामक धूमकेतु के आने से पहले पृथ्वी पर निएंडरथल (40 हजार साल पहले पृथ्वी पर रहने वाले इंसानों की विलुप्त प्रजाति) रहते थे और जब तक इस धूमकेतु ने अपनी कक्षा में एक चक्कर पूरा किया, तब तक आधुनिक मानव की पूरी प्रजाति विकसित हो चुकी है। धूमकेतु अक्सर सूर्य के चारों ओर अंडाकार कक्षाओं में परिक्रमा करते हैं और जब वे अपनी कक्षा में सूर्य के पास आते हैं, तो उनकी पूंछ दिखाई देती है। पूंछ का निर्माण धूमकेतु में सूर्य की गर्मी के चलते बर्फ पिघलने से होता है।
वर्ष 2020 में उत्तरी गोलार्द्ध में कई जगहों पर देखे गए नियो वाइज कॉमेट की पूंछ को लोगों ने खुली आंखों से देखा था। कुछ धूमकेतुओं की कक्षाएं अपेक्षाकृत छोटी होती हैं, जबकि अन्य इतने लंबे होते हैं कि उन्हें सूर्य के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में हजारों साल लग जाते हैं। ऐसे धूमकेतुओं को 'दीर्घकालिक धूमकेतु' कहते हैं। अधिकांश 'दीर्घकालिक धूमकेतु' हमारे सूर्य के चारों ओर लगभग 306 अरब किलोमीटर दूर एक बर्फीले बादल से आते हैं। सूर्य के चारों ओर यह बादल बर्फीले टुकड़ों से बना एक आवरण है और इसे उर्ट क्लाउड कहा जाता है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि धूमकेतु सी/2022 इ3(र्जेडटीएफ) का जन्म भी इसी उर्ट क्लाउड में हुआ था। इसके हरे रंग के कारण लोग इसे ग्रीन कॉमेट या हरा धूमकेतु कहते हैं। इस धूमकेतु की खोज मार्च, 2022 में की गई थी। जनवरी, 2023 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स ने सूर्य के करीब दिखने पर धूमकेतु की एक तस्वीर जारी की थी। हिमालयन चंद्र टेलीस्कोप ने ये तस्वीरें लद्दाख के हनले गांव से खींची थी और तस्वीर से साफ जाहिर हो रहा है कि यह धूमकेतु हरे रंग का है। वैज्ञानिकों के अनुसार, दो फरवरी को धूमकेतु पृथ्वी के सबसे करीब आया था। मुंबई के नेहरू तारामंडल के निदेशक अरविंद परांजपे के अनुसार, यह धूमकेतु पृथ्वी से करीब 4.2 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर आएगा, जो सूर्य से बुध की दूरी के बराबर है। वर्तमान में यह रात 10 बजे के आसपास उत्तरी क्षितिज के पास उदय हो रहा है। यह सुबह 11 बजे तक दिखाई देगा। इस धूमकेतु को आप दूरबीन से देख सकते हैं।
वर्ष 1682 में, ब्रिटिश खगोलशास्त्री एडमंड हैली ने धूमकेतु का गंभीर रूप से अवलोकन किया और निष्कर्ष निकाला कि धूमकेतु वास्तव में समय-समय पर दिखाई देते हैं। उन्होंने सही भविष्यवाणी की कि यह 1757 में वापस आएगा, जिसने उनके तर्क को और मजबूत किया। प्रत्येक 76 वर्ष बाद आने वाला हैली धूमकेतु मानव इतिहास की अनेक घटनाओं का साक्षी रहा है। यह खुली आंखों से दिखाई देता है।
कुछ अन्य प्रसिद्ध धूमकेतुओं की भी चर्चा अक्सर होती है। इनमें शूमेकर-लेवी धूमकेतु जुलाई, 1994 में बृहस्पति से टकराकर नष्ट हो गया था। वर्ष 1997 में हेल-बॉप धूमकेतु काफी चर्चा में रहा था। हर 33 साल में सूर्य के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने वाले धूमकेतु टेंपल-टटल के मलबे के कारण हर नवंबर में पृथ्वी पर उल्का वृष्टि होती है। नवीनतम गणना के अनुसार, ज्ञात धूमकेतुओं की संख्या 4,000 के करीब है।
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