मोहम्मद रफी की पुण्यतिथि : फकीरों को सुनकर सीखा गीत, फिर इस शख्स की नेमत ने बदल दी तकदीर

admin
Updated At: 31 Jul 2023 at 03:45 PM
संगीत की दुनिया में मोहम्मद रफी का नाम अमर है। एक वक्त था जब रफी साहब के गाने के बिना किसी फिल्म की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। रफी साहब के सुर छिड़ते थे, और इससे लोगों के दिल के तार अपने आप जुड़ जाते थे। मोहम्मद रफी के सदाबहार गाने आज भी लोगों की जुबां पर रहते हैं। 24 दिसंबर,1924 को जन्मे मोहम्मद रफी एक बेहतरीन गीतकार के साथ एक जिंदादिल व्यक्तित्व थे। हालांकि, हिंदी सिनेमा को अपनी गायिकी से गुलजार करने वाले रफी साहब ने 31 जुलाई 1980 को हार्ट अटैक से महज 55 की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया। महज शरीर से रुखसत होने वाले रफी साहब अपने गानों के जरिए फैंस के दिलों में हमेशा जिंदा हैं। आइए आज इस सदाबहार फनकार की पुण्यतिथि पर इनसे जुड़े कुछ अहम पहलुओं पर गौर फरमा लेते हैं-
सुरों के सरताज मोहम्मद रफी को बचपन से ही गाने का शौक था। रफी साहब का व्यक्तित्व बचपन से ही शांत और सरल था। बचपन में रफी साहब अपने गांव में फकीरों की नकल उतार उनकी तरह गाना गाया करते थे, जिसके बाद उनकी यह कला उनका शौक बन गया, और वह धीरे-धीरे गायिकी में और ज्यादा निखरते चले गए। हालांकि, अगर नाई की दुकान में काम करने वाले नौ वर्ष के रफी पर पंडित जीवनलाल की नजर नहीं पड़ती, तो शायद आज उन्हें कोई नहीं जानता।
24 दिसम्बर 1924 को अमृतसर के कोटला सुल्तान सिंह गांव में जन्मे मोहम्मद रफी छह भाई बहनों में दूसरे बड़े बेटे थे। रफी जब नौ वर्ष के हुए तो उनका पूरा परिवार अमृतसर से लाहौर आकर बस गया। मोहम्मद रफी के बड़े भाई की एक नाई की दुकान थी। पढ़ाई-लिखाई में दिलचस्पी न होने के कारण रफी नन्ही उम्र से ही भाई की दुकान में उनका हाथ बंटाते थे। वहीं, वर्ष 1933 में संगीतकार पंडित जीवनलाल रफी की नाई की दुकान पर पहुंचे। जब जीवनलाल ने बाल कटवाते वक्त रफी को मधुर आवाज में गाते सुना तो वह तभी उनकी गायिकी के मुरीद हो गए।
रफी को रेडियो चैनल के ऑडीशन के लिए बुलाया गया, जिसे उन्होंने बेहद सरलता से पार कर लिया। जीवनलाल ने ही रफी को गायिकी की ट्रेनिंग दी, और वह रेडियो के गानों के लिए अपनी आवाज देने लगे। वर्ष 1937 में रफी की किस्मत तब पलटी जब मशहूर गायक कुंदनलाल सहगल ने बिजली न होने के कारण मंच पर गाने से इनकार कर दिया। कार्यक्रम के आयोजकों ने उस दौरान 13 वर्षीय रफी को गाने का अवसर प्रदान किया। रफी की आवाज सुनकर दर्शकों में बैठे केएल सहगल ने तभी भांप लिया था कि यह लड़का बड़ा होकर दिग्गज कलाकार बनेगा। के.एल सहगल की बात सच भी साबित हुई। अभिनेता-निर्माता नजीर मोहम्मद ने 100 रुपये का टिकट भेजकर रफी को बॉम्बे बुलाया। रफी बॉम्बे पहुंचे, और पहली बार हिंदी फिल्म पहले आप के लिए ‘हिंदुस्तान के हम हैं, हिंदुस्तान हमारा’ गाना रिकॉर्ड किया। फिर क्या था, समय बीतता चला गया और रफी देशभर और दुनियाभर में मशहूर होते चले गए।
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