छत्तीसगढ़ के गठन की 23वीं वर्षगांठ आज, 20 गुना बढ़ा है राज्य का बजट

admin
Updated At: 01 Nov 2022 at 04:28 PM
मध्यप्रदेश का बंटवारा कर बनाए गए छत्तीसगढ़ ने 22 साल पूरे कर लिए हैं। आज एक नवंबर को छत्तीसगढ़ अपना 23 वां स्थापना दिवस मना रहा है। इन 22 वर्षों में राज्य का बजट 20 गुना बढ़ गया है। अलग -अलग सरकारों ने विकास के नए आयाम स्थापित करने का दावा किया।
एक नवंबर 2000 को अस्तित्व में आए छत्तीसगढ़ का पहला आम बजट 2001-02 में वित्त मंत्री रामचंद्र सिंहदेव ने पेश किया था, तब बजट का आकार करीब 5,700 करोड़ रुपए था। वित्त मंत्री के रूप में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 2022-23 के लिए 1,04,603 करोड़ रुपए का बजट पेश किया। आकार के लिहाज से यह अब तक का सबसे बड़ा बजट है। छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान और ग्रामीण अर्थव्यवस्था वाला राज्य है। हर सरकार ने अपने बजट और प्राथमिकता में अब तक खेती और गांवों को ही रखा।
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छत्तीसगढ़ ने इन 22 वर्षों में तीन मुख्यमंत्री देखे। यहां के पहले मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी थे। वे करीब तीन साल तक कांग्रेस नेता के तौर पर मुख्यमंत्री रहे। स्व. जोगी ने 2016 में कांग्रेस से अलग होकर अपनी नई पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी) बना ली। 2003 में सत्ता बदली। कांग्रेस की जगह भाजपा आई।


भाजपा ने यहां 2003 से 2018 तक लगातार 15 साल राज किया और 15 साल तक डॉ. रमन सिंह लगातार मुख्यमंत्री रहे। 2018 में सत्ता बदली और कांग्रेस नेता भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बने। तब से भूपेश बघेल कुर्सी संभाले हुए हैं। 22 वर्षों में छत्तीसगढ़ का राजनीतिक और सांस्कृतिक माहौल बदलने के साथ भूगोल भी बदल गया। 16 से 33 जिले हो गए। डॉ. रमन सिंह ने खूब जिले बनाए, तो भूपेश बघेल भी पीछे नहीं हैं। जिले बन गए, पर कई इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए अब भी तरस रहे हैं।
इन 22 सालों में छत्तीसगढ़ की जनता ने राजनीतिक उठापटक भी खूब देखी। जोगी राज में छत्तीसगढ़ दलबदल के लिए चर्चित रहा। जोगी के चुनाव लड़ने के लिए भाजपा के एक विधायक ने सीट खाली कर दी तो बसपा का विधायक भी जोगी के साथ हो लिया। इसके बाद भाजपा के 12 विधायक एक साथ कांग्रेस में आ गए। 15 साल राज्य में राज करने वाली भाजपा 2018 में बुरी तरह मात खा गई। उसके 15 ही विधायक चुने जा सके।
जोगी कांग्रेस से अलग होकर 2018 में तीसरी शक्ति बने, लेकिन उनके निधन के बाद उनकी पार्टी में फूट ही पड़ गई। 2018 में शानदार जीत के बाद कांग्रेस लगातार उपचुनाव जीतती रही, पर राजनीतिक दांवपेंच भी चरम पर रहा। दो दशक से अधिक समय में छत्तीसगढ़ विकास के पथ पर बढ़ा। कृषि से लेकर अन्य कई क्षेत्रों में पुरस्कार भी हासिल किए ,लेकिन किसान अब भी सरकार के बोनस और समर्थन मूल्य की तरफ टकटकी लगाए रहते हैं। जोगी के समय शुरू हुआ फसल चक्र परिवर्तन की धारणा समय के साथ आकार नहीं ले सकी।
राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ की आबादी तेजी से बढ़ी। गांव-कस्बों का रूप बदला। गौरवपथ बने। स्मार्ट सिटी बनाई गईं, फिर छत्तीसगढ़ का कोई शहर स्वच्छता में अव्वल नहीं हो सका। इमारतें बनीं। नई राजधानी भी बन गई, लेकिन अच्छी सड़कों के लिए लोग संघर्ष करते अब भी दिखते हैं। 22 सालों में राज्य में सिचाईं की कोई बड़ी परियोजना नहीं आई।
किसानों को अपनी फसल के लिए वर्षा जल के साथ जमीन के पानी पर निर्भर रहना पड़ता है। करोड़ों खर्च कर बसाई गई नई राजधानी अभी भी पूरी तरह विकसित नहीं हो सकी है। छत्तीसगढ़ जब बना तब एकमात्र मेडिकल कॉलेज रायपुर में था। आज संभाग मुख्यालय ही नहीं, कई जिला मुख्यालयों में भी मेडिकल कॉलेज खुल गए हैं, फिर भी दूरदराज के इलाकों में लोगों को झोलाछाप डाक्टरों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। कुपोषण जैसी समस्या अब भी दूर नहीं हो पाई है।
छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या का समाधान अब भी नहीं निकल पाया है। इस समस्या से राज्य का आदिवासी इलाका बस्तर जूझ रहा है। सालाना करोड़ों रुपए खर्च करने और हजारों की संख्या में सुरक्षा बलों की तैनाती के बाद भी बेगुनाह आदिवासी नक्सली हिंसा के शिकार हो रहे हैं। 22 सालों में छत्तीसगढ़ की विशालता तो बढ़ी है और एक नई पहचान बनी है , दौड़ में अब भी पीछे ही नजर आती है। बड़े उद्योग, रोजगार के बड़े अवसर के साथ शिक्षा -चिकित्सा के अच्छे और प्रतिष्ठित संस्थानों की अब भी कमी नजर आती है।



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