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श्रीलंका में सरकारी खर्च नहीं घटा कर घिरे विक्रमसिंघे, अब सरकार ने दी सफाई

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admin

Updated At: 16 Nov 2022 at 09:22 PM

सरकारी खर्च घटाने की योजना पेश करने में राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे की नाकामी से यहां अर्थशास्त्रियों को निराशा हुई है। विक्रमसिंघे ने सोमवार को 2023 के लिए अपनी सरकार का बजट पेश किया। इसमें आम जन पर टैक्स का बोझ काफी बढ़ा दिया है, लेकिन राजकोषीय सेहत सुधारने के लिए सरकारी खर्च के प्रावधान शामिल नहीं हैं। विक्रमसिंघे ने वित्त मंत्रालय अपने पास ही रखा हुआ है, इसलिए बजट उन्होंने खुद पेश किया।सरकारी खर्च के मुद्दे पर हुई आलोचना से दबाव में आई सरकार ने सफाई देने अधिकारियों को सामने किया है। वित्त सचिव महिंदा सिरिवर्धने ने मंगलवार को यह स्वीकार किया कि सिर्फ टैक्स बढ़ाने से काम नहीं चलेगा, बल्कि सरकार को अपने खर्च को घटाना होगा। उन्होंने एक बैठक में कहा- ‘राजस्व में वृद्धि और खर्च में कटौती दोनों कदम साथ-साथ उठाने होंगे। अगर खर्च पर लगाम नहीं लगाई गई, तो राजस्व जुटाने से कोई लाभ नहीं होगा।’आर्थिक संकट में फंसे श्रीलंका ने बीते अप्रैल में अपने को डिफॉल्टर (कर्ज चुकाने में अक्षम) घोषित कर दिया था। उसके बाद कर्ज संकट से निकलने में सहायता पाने के लिए उसने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का दरवाजा खटखटाया। आईएमएफ ने श्रीलंका को कर्ज देने का सैद्धांतिक फैसला किया है। लेकिन उसने व्यवहार में ऋण पाने से पहले श्रीलंका को कई शर्तों को पूरा करने के लिए कहा है। इनमें एक प्रमुख शर्त राजकोषीय सेहत बेहतर करने की है।आईएमएफ ने ध्यान दिलाया है कि 2015 के बाद श्रीलंका में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की तुलना में सरकारी खर्च में लगातार बढ़ोतरी हुई है। तब ये खर्च 17 फीसदी से बढ़ कर जीडीपी के 20 फीसदी तक पहुंच चुका है। लेकिन विक्रमसिंघे का बजट रोजकोषीय सेहत सुधारने के लिए पूरी तरह टैक्स वसूलने पर निर्भर दिखा है।श्रीलंका की गोटाबया राजपक्षे सरकार ने 2019 में टैक्स में भारी कटौती की थी। देश को आर्थिक संकट में डालने में उसके इस कदम की खास भूमिका रही थी। लेकिन विश्लेषकों के मुताबिक राजपक्षे की टैक्स कटौती का ज्यादातर लाभ धनी तबके को मिला था। जबकि विक्रमसिंघे ने जो नए टैक्स लगाए हैं, उनका ज्यादातर बोझ आम जन पर पड़ेगा। धनी तबकों को इसमें मोटे तौर पर बख्श दिया गया है।पूर्व राष्ट्रपति जेआर जयवर्धने के शासनकाल में सरकार के परामर्शदाता रहे अर्थशास्त्री बीआर शिनॉय ने कहा है कि राजस्व जुटा कर राजकोषीय सेहत सुधारने की कोशिश श्रीलंका जैसे देश में कामयाब नहीं होगी। उन्होंने ध्यान दिलाया कि श्रीलंका सरकार की आदमनी पिछले सात वर्षों में 45 फीसदी बढ़ी है, जबकि उसका खर्च 48 फीसदी बढ़ा है।खर्च घटाने की कोशिश में श्रीलंका सरकार ने बीते अप्रैल में कर्मचारियों की भर्ती पर रोक लगा दी थी। तब सभी मंत्रालयों से कहा गया था कि वे अपने खर्च को घटाएं। सिरिवर्धने इन उपायों का जिक्र करते हुए कहा- ‘फिलहाल ऐसा समय है, जब हमें जिम्मेदारी के साथ चलना होगा। हम स्थिति पर नजर रखे हुए हैं।’ लेकिन उन्होंने कहा कि सार्वजनिक सेवाएं बनाए रखना अनिवार्य है, इसलिए टैक्स बढ़ाना पड़ा है।

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