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नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति स्थापना की दिशा में बड़ा कदम : : छत्तीसगढ़ में लागू हुई “नक्सलवादी आत्मसमर्पण/पीड़ित राहत एवं पुनर्वास नीति-2025”

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जिलों में समितियों के गठन व नोडल अधिकारियों की नियुक्ति के निर्देशरायपुर, 10 अप्रैल 2025छत्तीसगढ़ शासन ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति स्थापना और सामाजिक पुनर्वास की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए “नक्सलवादी आत्मसमर्पण/पीड़ित राहत एवं पुनर्वास नीति-2025” को औपचारिक रूप से लागू कर दिया है। गृह विभाग द्वारा 28 मार्च 2025 को जारी अधिसूचना के अनुसार, इस नीति का उद्देश्य नक्सली हिंसा से प्रभावित नागरिकों और आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को पुनर्वासित कर मुख्यधारा से जोड़ना है।जिला स्तर पर गठित होंगी पुनर्वास समितियाँराज्य सरकार ने सभी जिलों में इस नीति के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु विशेष पुनर्वास समितियों के गठन के निर्देश दिए हैं। प्रत्येक समिति की अध्यक्षता जिला कलेक्टर करेंगे, जबकि पुलिस अधीक्षक को सचिव नामित किया गया है। इसके अतिरिक्त समिति में वनमंडलाधिकारी, जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी, कलेक्टर द्वारा नामांकित दो अन्य अधिकारी तथा सशस्त्र बलों के प्रतिनिधि शामिल रहेंगे।नोडल अधिकारियों की नियुक्ति अनिवार्यहर जिले और सब-डिविजनल स्तर पर एक-एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाएगा, जो राहत एवं पुनर्वास कार्यों की निगरानी करेंगे। इन अधिकारियों का संपर्क नंबर और ई-मेल राज्य शासन को भेजना अनिवार्य होगा। गृह विभाग ने निर्देशित किया है कि वर्ष 2000 के पश्चात से अब तक के सभी पीड़ित प्रकरणों को चिन्हित कर राहत प्रदान की जाए और आत्मसमर्पित नक्सलियों को पुनर्वास की मुख्यधारा में लाया जाए।डिजिटल पोर्टल से होगी निगरानीनीति के अंतर्गत एक विशेष डिजिटल पोर्टल विकसित किया जा रहा है, जिसमें प्रत्येक पीड़ित और आत्मसमर्पणकर्ता की जानकारी दर्ज कर उन्हें एक यूनिक आईडी प्रदान की जाएगी। यह पोर्टल जिला अधिकारियों के लिए एक डैशबोर्ड के रूप में कार्य करेगा, जिसकी निगरानी से राहत एवं पुनर्वास की प्रक्रिया पारदर्शिता और समयबद्धता के साथ सुनिश्चित होगी।निर्देशों का सख्ती से पालन अनिवार्यगृह विभाग ने सभी जिला कलेक्टरों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वे नीति के दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करें और निर्धारित समयसीमा में सभी कार्यों को पूर्ण करें। यह नीति राज्य में दीर्घकालीन शांति, सामाजिक पुनर्संरचना और समावेशी विकास की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकती है।

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