रिपोर्ट: अर्चना थॉमस"Forests Sustain Life – Let’s Preserve Them!"वन केवल हरियाली नहीं बल्कि पृथ्वी पर जीवन का आधार हैं। यह ऑक्सीजन का प्रमुख स्रोत हैं, जो प्राणवायु प्रदान करता है। इसके अलावा, जंगल जैव विविधता को संरक्षित रखते हैं, जल स्रोतों को रीचार्ज करते हैं, और लाखों लोगों की आजीविका का साधन हैं। लेकिन वर्तमान समय में बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण जंगलों का तेजी से विनाश हो रहा है, जिससे पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ रहा है।छत्तीसगढ़: जंगलों का राज्यछत्तीसगढ़ प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध राज्य है, जहां लगभग 44% क्षेत्रफल जंगलों से ढका हुआ है। जशपुर, सरगुजा, बस्तर, सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर, बलरामपुर, बिलासपुर, कोरिया, मनेंद्रगढ़- मरवाही जैसे जिलों में घने जंगल हैं। यहाँ वन-आधारित आजीविका पर लाखों लोग निर्भर हैं, विशेष रूप से आदिवासी समुदाय। राज्य सरकार वन संरक्षण और सामुदायिक वन प्रबंधन की दिशा में कई प्रयास कर रही है, जिससे जंगलों की कटाई रोकी जा सके और वन्यजीवों का संरक्षण हो।मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने इस अवसर पर कहा-"छत्तीसगढ़ की संस्कृति और पर्यावरण में जंगलों की अहम भूमिका है। हमें न केवल जंगलों को बचाने के लिए काम करना होगा, बल्कि स्थानीय समुदायों को भी इस अभियान में शामिल करना होगा। वन संरक्षण से ही आने वाली पीढ़ियों को एक सुरक्षित भविष्य दिया जा सकता है।"झारखंड: हरियाली और आदिवासी संस्कृति का संगमझारखंड भी जंगलों से समृद्ध राज्य है। गुमला, चौंनपुर, लातेहार, डाल्टेनगंज, सिमडेगा, रांची, दुमका, गिरिडीह, खूंटी, साहेबगंज, माइकसूलीगंज, देवघर, सुल्तानगंज जैसे क्षेत्रों में घने वन फैले हुए हैं। ये जंगल आदिवासी समुदायों की संस्कृति, परंपराओं और आजीविका का आधार हैं।झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा—"झारखंड का जंगल केवल हरियाली नहीं, बल्कि हमारी पहचान, संस्कृति और जीवन का स्रोत है। हमें जंगलों की रक्षा करनी होगी, ताकि हमारा अस्तित्व बना रहे।"ओडिशा में सुंदरगढ़, संबलपुर, पूरी, भुवनेश्वर, बड़बिल, राउरकेला, अंगुल, परादीप, कटक, मलाकगिरी, नवापारा जैसे क्षेत्रों में विशाल वन हैं। इन जंगलों में हाथी, बाघ, हिरण, और कई दुर्लभ वन्यजीव पाए जाते हैं। यहाँ की आदिवासी जनजातियाँ जैसे गोंड, संथाल, हो, भूमिज, और अन्य वन-आधारित जीवनशैली अपनाए हुए हैं।वन संरक्षण में सामाजिक कार्यकर्ताओं की भूमिकासरगुजा,बस्तर और दंतेवाड़ा में सामाजिक कार्यकर्ता जंगलों को बचाने के लिए जागरूकता अभियान चला रहे हैं। वे आदिवासियों को वनों के सतत उपयोग के तरीके सिखा रहे हैं। झारखण्ड के सामाजिक कार्यकर्ता स्थानीय समुदायों को संगठित कर वन संरक्षण की दिशा में काम कर रहे हैं।ओडिशा और छत्तीसगढ़-आंध्र सीमा पर कार्य कर रहे पर्यावरणविद् पारंपरिक कृषि और वनीकरण को बढ़ावा देकर जंगलों को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं।वन संरक्षण के लिए जरूरी कदम1. सामुदायिक भागीदारी: वन संरक्षण में स्थानीय समुदायों को शामिल करना।2. सतत वनीकरण: अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना और कटाई पर नियंत्रण लगाना।3. वन्यजीव संरक्षण: वन्यजीवों के आवास बचाने के लिए विशेष उपाय करना।4. पर्यावरण शिक्षा: स्कूलों और कॉलेजों में पर्यावरण संरक्षण पर विशेष पाठ्यक्रम लागू करना।5. कानूनी संरक्षण: वन संरक्षण से जुड़े कानूनों को सख्ती से लागू करना।विश्व वानिकी दिवस केवल एक औपचारिक दिवस नहीं, बल्कि एक संकल्प लेने का अवसर है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि जंगल केवल हमारी पीढ़ी तक सीमित न रहें, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी हरे-भरे बने रहें। हर व्यक्ति को एक पेड़ लगाना चाहिए और उसकी देखभाल करनी चाहिए। सरकार, सामाजिक कार्यकर्ताओं और जनता को मिलकर जंगलों के संरक्षण के लिए निरंतर प्रयास करने होंगे।"यदि जंगल बचेंगे, तो जीवन बचेगा।"